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इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है

ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


यह भी स्मरण रखना होगा कि मुगल साम्राज्य के यौवनकाल में, बाबर से औरंगजेब तक, शाहजहाँ ही ऐसा बादशाह था जो अपने जीवनकाल में ही अपदस्थ कर दिया गया और आठ वर्ष बाद अपने ही पुत्र की कैद में बन्दी-रूप में मरा।

शाहजहाँ का राज्य यदि शान्ति तथा समृद्धि का राज्य होता तो उसके रुग्ण होने की सूचना मिलते ही उसके पुत्र तथा अन्य अधीनस्थ कर्मचारी विद्रोह न कर उठते। किन्तु ऐसी राजनीतिक उथल-पुथल यह सिद्ध करती है कि किस प्रकार उसकी पारिवारिक स्थिति डावाँडोल थी, प्रजा कष्ट में होने के कारण असन्तुष्ट थी। मुहम्मद कासिम अपने 'आलमगीरनामा'* में शाहजहाँ के निन्दनीय शासन के अन्त के विषय में जो लिखता है वह इस प्रकार है-"शाहजहाँ को ८ सितम्बर, १६५७ को रोग ने आ दबोचा। उसकी बीमारी लम्बी चली और प्रतिदिन उसका शरीर क्षीण होता गया। इस कारण वह राज्य के कार्य करने में असमर्थ था। प्रशासन में सभी प्रकार की अनियमितताएं होने लगी और हिन्दुस्तान के बहुत बड़े भाग में बड़े उपद्रव होने लगे। अयोग्य एवं अकर्मण्य दाराशिकोह स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी समझने लगा, किन्तु राजा की अपेक्षित योग्यता के अभाव में लोभ के वशीभूत उसने अपना उल्लू सीधा करते हुए साम्राज्य की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाया। राज्य के कार्य में घोर दुर्व्यवस्था उत्पन्न होने लगी। असन्तुष्ट और विद्रोही लोगों ने अपने सिर उठाने शुरू किए तो इधर-उधर झगड़े बढ़ने लगे। उद्दण्ड प्रज्ञा ने कर चुकाने से इन्कार कर दिया। सब ओर से विद्रोह के बीज पनपने लगे और धीरे-धीरे वह इतनी ऊंचाई पर पहुंच गए कि गुजरात में मुरादबा ने स्वयं गद्दी संभाल ली। उधर बंगाल में शुजा ने भी वही किया।"
१. इलियट व डौसन का इतिहास, भाग ७, पृष्ठ १७८-१७९

यदि शाहजहाँ का शासनकाल स्वर्णिम होता, जैसा कि गलत तरीके से उसे ऐसा बताया जाता है, तो जब वह बीमार पड़ा तब देशभर में ऐसी अस्थिरता और विद्रोह की भावना न भड़क उठती। ऊपर जो उद्धरण प्रस्तुत किया गया है उससे सिद्ध होता है कि नि:स्सन्देह शाहजहाँ का पूर्ण शासनकाल असन्तोष, अव्यवस्था, क्रूरता, अकाल, भ्रष्टाचार, नरसंहार और अनैतिकता का था, यही कारण था कि उसके कुशासन में पनपनेवाला असन्तोष उसकी बीमारी की सूचना पाते ही सारे साम्राज्य में विद्रोह के रूप में भड़क उठा। यदि उसका राज्य समझदारी और उदारता का होता तो उसकी बीमारी की सूचना से उसकी प्रजा में इसके प्रति सहानुभूति उमड़ती। यह तो दूर, उसके अपने पुत्र उससे विद्रोह कर उठे। शाहजहाँ के (कु)शासन का इससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता था? भारत के राजपूत शासकों के साथ ऐसी बात नहीं थी, क्योंकि वे अच्छे पिता, उदार शासक और श्रेष्ठ मानव थे।

यद्यपि उपरिलिखत सर्वेक्षण शीघ्रता से किया गया है तदपि इससे यह सिद्ध होता है कि अपने ३० वर्ष के शासनकाल में शाहजहाँ ने ४८ अभियान छेड़े जो अनुपात में डेढ़ अभियान प्रतिवर्ष होता है। इसका अभिप्राय यह है कि शाहजहाँ का पूर्ण शासनकाल अनन्त युद्धों का शासनकाल था। और फिर भी वर्तमान इतिहास- लेखक बिना किसी प्रमाण के इस बात पर बल देते हैं कि शाहजहाँ का शासनकाल स्वर्णिम और शान्तिमय काल था।

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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