इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी शाहजहाँ के शासन के चौथे वर्ष अर्थात् उस वर्ष जब मुमताज़ की मृत्यु हुई थी, सन् १६३० का विवरण* भाग एक के पृष्ठ ३३८ पर लिखता है। पृष्ठ ३६२ पर उसी वर्ष के विवरण को जारी रखते हुए वह लिखता है-"प्रचलित वर्ष में भी सीमान्त प्रदेशों में अभाव रहा और दक्षिण तथा गुजरात तो पूर्ण अभाव रहा। इन दो प्रदेशों के निवासी नितान्त भुखमरी के शिकार बने। रोटी के एक टुकड़े के लिए जीवन प्रस्तुत किया जाता, किन्तु खरीददार कोई नहीं था। सन्तुष्ट जीवन व्यतीत करनेवाले भी आहार के लिए मारे-मारे फिरते थे। जो हाथ सदा देते रहे वे आज भोजन की भिक्षा के लिए उठने लगे। जिन्होंने कभी घर से बाहर पग भी न रखा हो वे आहार के लिए दर-दर भटकने लगे। बहुत समय तक कुत्ते का मांस बकरे के मांस के रूप में बेचा जाने लगा और हड्डियों को पीसकर आटे में मिला, बेचा जाने लगा। जब इसका पता चला तो बेचनेवालों को न्याय के हवाले किया जाने लगा, अन्त में वह अभाव इस सीमा तक पहुंच गया कि मनुष्य एक-दूसरे का मांस खाने को लालायित रहने लगे और पुत्र के प्यार से अधिक उसका मांस प्रिय हो गया। मरनेवालों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि उनके कारण सड़कों पर चलना कठिन हो गया था, और जो चलने-फिरने लायक थे वे भोजन की खोज में दूसरे प्रदेशों और नगरों में भटकते फिरते थे। वह भूमि जो अपने उपजाऊपने के लिए विख्यात थी वहाँ कहीं उपज का चिह्न तक नहीं रहा था। बादशाह ने अपने अधिकारियों को आज्ञा देकर बुरहानपुर, अहमदाबाद और सूरत के के प्रदेशों में नि:शुल्क भोजनालयों की व्यवस्था करवाई।"
* इलियट व डौसन का इतिहास, भाग ७, पृष्ठ १९-२५
कोई सहज ही अनुमान लगा सकता है कि जब बकरे के मांस के नाम पर कुत्ते का मांस बेचा जाता हो, माता-पिता द्वारा पुत्र का मांस-भक्षण किया जा रहा हो और मृत कुत्ते की हड्डियाँ पीसकर आटे में मिलाई जा रही हों तो बीमारियों का प्रकोप भी हुआ ही होगा।
यह अब पाठकों के ही विचार का विषय है कि भीषण दुर्भिक्ष के ऐसे वर्ष में शाहजहाँ अपनी मृत पत्नी मुमताज़ की स्मृति में किसी भव्य भवन का निर्माण कार्य आरम्भ करा पाया होगा। ऐसा दुष्काल केवल उसके शासन के चौथे वर्ष में ही नहीं पड़ा था। बादशाहनामे का लेखक, उपरिलिखित सार-संक्षेप इन शब्दों से प्रारम्भ करता है- 'वर्तमान वर्ष में भी जिससे यह प्रकट होता है जब-तब अकाल पड़ता रहता था। ऐसा कौन-सा राजा होगा जो ऐसी विषम स्थिति में विशाल स्मारक बनवाना प्रारम्भ करने का साहस भी करे। और जब मनुष्य मक्खियों की भांति मर रहे हों उस समय उसके पास इतना बड़ा व्ययसाध्य स्मारक बनाने के लिए धन और जन कहाँ से आया होगा?
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