इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
सुप्रसिद्ध इतिहासकार सर एच. एम. इलियट ने अपने आठ भागों वाले ग्रन्थ, जिसमें अनेक मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास ग्रन्थों का अध्ययन है, की भूमिका में लिखा है कि वे "निहित स्वार्थयुक्त धोखा" हैं। उन इतिहासों के अध्ययन से निकले अपने निष्कर्षों को वे पूर्णतया संगत सिद्ध करते हैं। यहाँ हम उन निष्कर्षों को उद्धत करते हैं जिनका सम्बन्ध चौथे मुगल बादशाह जहाँगीर के शासनकाल की उत्तरकालीन घटनाओं से है। इन इतिहासों की अविश्वसनीयता के सम्बन्ध में न केवल सामान्य पाठक अपितु इतिहास के विद्यार्थियों तक को अन्धकार में रखा गया है।
यह भी स्मरणीय है कि जहाँगीर उस बादशाह शाहजहाँ, जिसे ताजमहल और प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन का निर्माता कहा जाता है और जिसे हम अपनी पुस्तक मे मे चुनौती दे रहे हैं, का पिता था।
जहाँगीरनामे के सम्बन्ध में सर एच. एम. इलियट की मान्यता उसी प्रबलता के साथ सभी मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास-ग्रन्थों पर लागू होती है। वे सभी स्पष्ट अतिशयोक्तियों, झूठे दावों, सत्य को दबाने, धोखे से भ्रामक प्रतिनिधित्व देने के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उदाहरणार्थ, जहाँ कहीं भी वे कहते हैं कि मुसलमान शासकों ने मन्दिर ध्वस्त किए और मस्जिदों का निर्माण किया, इन सबसे उनका अभिप्राय है कि मूर्तियों को उखाड़कर फेंक दिया और उन मन्दिरों को मस्जिदों के रूप में प्रयोग किया।
जहाँ कहीं भी मुस्लिम इतिहास यह दावा करते हैं कि मुगल शासकों अथवा सेनापतियों ने नगर बसाए, दुर्ग बनाए और सड़कें तथा पुल बनाए या कुएँ और तालाब खुदवाए, उनके वे सारे दावे स्पष्टतया झूठे हैं। वे भारत की सम्पदा और निर्मित भवनों का आनन्द लूटने आए थे किन्तु श्रम करके निर्माण करने के लिए नहीं। किसी भी निर्माण कार्य के लिए उनके पास न तो समय, धन, धैर्य, सुरक्षा, बुद्धिचातुर्य, श्रम और साधन थे और न ही उतने आदमी। यहाँ तक कि उनके प्राचीन और मध्ययुगीन साहित्य में कोई एक भी ऐसी पुस्तक नहीं है जो उनकी अपनी वास्तुशिल्प के विषय की हो।
जहाँगीर के शासन के सम्बन्धित उपरिउद्धृत सभी मान्यताओं का विस्तृत विवेचन सर एच. एम. इलियट ने अपनी पुस्तक में किया है। वह मानता है* "कई पुस्तकें हैं जो बादशाह जहाँगीर के आत्मचरितात्मक संस्मरण कहे जाते हैं और वहाँ उनके शीर्षकों में भ्रम है"दो अलग-अलग संस्करण हैं जो एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। मेजर प्राइस ने एक का अनुवाद किया है तथा एण्डर्सन ने दूसरे पर लिखा है। यह भी देखने में आता है कि प्रत्येक संस्करण के अनेक प्रकार हैं।
* इलियट तथा डौसन का इतिहास, भाग ६, पृष्ठ २५१
"तारीख-ए-सलीमशाह* की अतिशयोक्तियों को दिखाने के लिए कतिपय उदाहरण देने आवश्यक हैं-
* इलियट तथा डौसन का इतिहास, भाग ६, पृष्ठ २५६-२६०
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ