सामाजिक >> सागर के मोती सागर के मोतीराजहंस
|
0 |
राजहंस का नवीन उपन्यास
मेरा कहना मान लो भाभी?' मोहन ने कहा-'फिर तुम्हें किसी | प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी। फिर इस घर में तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। खूब अच्छी तरह से सोच लो। क्यों अपनी जवानी को बरबाद करने पर तुली हुई हो।'
'मोहन तुम इस समय यहां?' कमला ने कहा-'चुपचाप यहां से चले जाओ वर्ना मैं चीखूँगी, चिल्लाऊंगी और सबको इकट्ठा कर लूगी।'
'हा...हा...हा।' मोहन ने एक ठहाका लगाया और फिर बोला- 'चिल्लाओ.. खूब चिल्लाओ लेकिन तुम्हारी आवाज सुनकर यहां आने वाला कोई नहीं है। खूब अच्छी तरह से समझ लो।'
'मैंने जब से तुम्हें देखा है तब से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन सब कुछ चला गया है। क्यों मुझे परेशान कर रही हो, मेरा कहना मान लो और मेरी बांहों में आ जाओ।'
कमला, मेरे हाथ में ये लम्बे फल वाला चाकू है इसे गौर से देख लो। यदि तुमने मेरा कहना नहीं माना तो मैं ये चाकू तुम्हारे बेटे भीमा के सीने में उतार दूंगा। यदि इसका जीवन चाहती हो तो मेरी बांहों में आ जाओ। मेरी इच्छा पूरी कर दो।'
'विजय, मैं मरती मर जाऊंगी लेकिन अपनी इज्जत पर आंच नहीं आने दूंगी। मैं तुम्हारी इच्छा कभी पूर्ण नहीं होने दूँगी। मैंने तुम्हें कई बार बता दिया है कि मैं उस तरह की औरत नहीं हूं।' और फिर कमला ने चाकू विजय के सीने में उतार दिया। चाकू के सीने में उतरने पर वह वहीं पर गिर पड़ा और फिर चन्द क्षणों बाद ही ठण्डा हो गया। वह मर चुका था।
(इसी उपन्यास से)
|