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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

Ajnabi : a hindi novel by RajHans

अजनबी

 

शाम के पांच बजे का समय था। कालेज, दफ्तर आदि की छुट्टी हो चुकी थी। हर व्यक्ति अपने घर पहुंचने की जल्दी में था। बस स्टाफ पर बस की इन्तजार में खड़े लोगों की भीड़ लगी हुई थी। इसी भीड़ के बीच लता भी थी जो काफी देर से खड़ी हुई। थी, लेकिन अभी तक बस नहीं पकड़ पाई थी।

लता की जर बार-बार उस भीड़ पर उठ रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस भीड़ में वह कैसे बस के अन्दर घुसे।

ये बात नहीं थी कि उसके घर के रास्ते की बस आई ही न हो। कई बसें आकर चली गई थीं। पर लता अभी भी अपनी जगह खड़ी थी।

लता सोच रही थी-आज फिर वह देर से पहुंचेगी, और फिर उसे मामी के क्रोध का निशाना बनना पड़ेगा। लता की आंखों में मामी का चेहरा नाच उठा। वह वहीं खड़े-खड़े कांप उठी। फिर तुरन्त उसने अपने को संयत कर लिया। लता की नजरे एक बार चारों ओर घूम गई। कई आंखें उसे घूर रही थीं।

अपने ख्यालों में खोये हुये उसे अभी तक कुछ भी पता नहीं चला था। पर वह कर भी क्या सकती थी। यह कोई नई बात नहीं थी। रोज हो ऐसा होता था। उसके साथ ही नहीं बल्कि हर उस लड़की के साथ जिसके चेहरे पर आकर्षण था। लता तो फिर। काफी सुन्दर लड़की थी।

"हैलो लता ! तुम अभी तक यहीं खड़ी हो।” पीछे से एक हाथ लता के कंधे परे पड़ा।

लता. अचानक चौंक गई लेकिन दूसरे ही क्षण उसका चेहरा खिल उठा। उसके सामने मुकेश खड़ा था। उसको सहपाठी। लता व मुकेश सहपाठी के साथ-साथ प्रेमी-प्रेमिका भी थे।

"अरे मुकेश तुम i" उसके स्वर में प्रसन्नता भरी हुई थी।

मुकेश के चेहरे पर मुस्कुराहट खेल गई।

“तुम अभी तक बस की इन्तजार कर रही हो?” मुकेश ने पूछा।

"देखो न। अभी भी भीड़ कितनी है। लगता है, ऐसे खड़े-खड़े ही रात हो जायेगी।” लता के चेहरे पर परेशानी के भाव। थे। फिर उसने मुकेश से पूछा-“तुम इस समय कहाँ जा रहे हो?"

"मैं भी घर ही जा रहा हूं।”

"इस समय कहाँ से आ रहे हो?” लता मुकेश का चेहरा देखते हुए बोली।

"ट्यूशन से...यार हम तो गरीब आदमी हैं। किसी तरह कामं चल रहा है।"

"हाँ...मैं तो जैसे रईस बाप की बेटी हूँ।” लता का स्वर अचानक ही भीग गया।

तभी सामने से बस आती नजर आई। दोनों बस की ओर लपके।

कुछ क्षणों बाद बस उनके सामने आकर रुक गई। भीड़ काफी थी। पर जैसे तैसे दोनों चढ़ गये और भाग्य से खाली सीट भी मिल गई। दोनों सीट पर बैठ गये। भीड़ में चढ़ने की वजह से लता की सांसें जोर-जोर से चल रही थीं। वह अपने को सुस्थिर करने का प्रयत्न करने लगी।

"हैलो मुकेश।” तभी पीछे से एक जाना पहचाना स्वर लता व मुकेश दोनों के ही कानों में पड़ा। लता के चेहरे के भाव बिगड़ गये।

इस स्वर को वह भली-भांति पहचानती थी। ये स्वर अमीर बाप के अमीर बेटे विकास का था। जो सदा ही लता का पीछा करता रहता था। घर में दो-दो गाड़ी होते हुये भी रोज वह बस स्टाप पर खड़ा रहता था और लता के घर तक उसका पीछा करता था।

रोज ही विकास को देखते ही लता का चेहरा कठोर हो जाता था। यही कारण था कि आज तक विकास लता को कुछ नहीं कह पाया था।

 

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