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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“हाँ...हाँ मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं लगती-मेरी तो तुम्हें परवाह ही नहीं है-सुनो जी मैं कर्जा कमी ने लेने दूंगी। मैंने कल मुकन्दी लाल को बुलाया हैं लता को देखने के लिये मैं जानती हूं-उसे लता पसन्द आ जायेगी। तुम्हें ये रिश्ता पसन्द करना ही होगा।”

"क्या...वो बूढ़ा बूस्ट तूने मेरी फूल सी नाजुक बच्ची के लिये देखा है?"

"अजी क्या लता तुम्हारी ही बच्ची है-क्या बचपन से आज

तक मैंने उसका कुछ नहीं किया-इतनी बड़ी क्या बिना पाले ही हो गई है-अजी मैं तो उसी के भले के लिये कर रही हूं-ऐसे बड़े घर में जाकर उसकी किस्मत खुल जायेगी-पैसों में खेलेगी-फिर शादी में कुछ खर्चा भी नहीं होगा।"

"अरी पर मुकन्दी की उप भी तो देख कितनी है? हमारी लता जैसे तो उसके बच्चे होंगे-भला लता से उसकी शादी कैसे हो सकती है।"

"अजी कैसे बात करते हो-उल्टी-सीधी बोलते शर्म नहीं आती तुम्हें।"

मामी का स्वर झुंझलाया हुआ था।

"अरी भागवान-मुझे तो तेरी बुद्धि पर शर्म आ रही है-कि कुछ कह तो नहीं सकता-मैं लता को कैसे कहूं कि बेटी तेरी मामी ने एक बाप की उम्र का दूल्हा तेरे लिये ढूंढा है-और क्या मैं नहीं जानता कि उसकी उम्र पैंसठ साल की है।"

“क्यों झूठ बोलते हो-मुकन्दी तो सिर्फ तीस के करीब है। शादी के बाद देखना उसकी जवानी क्या निखरेगी।" मामी ने खुशामद भरे स्वर में कहा।

"सुन मैं मुकन्दी से लता की शादी कभी नहीं करूंगा तू उसे सुबह ही मना करवा देना।” मामा के स्वर में दृढ़ता थी।

"मैं भी कहे देती हूं-शादी इसी जगह होगी-मैं उसे जुबान। दे चुकी हूं।" भामी गुर्राई।

"तू जुबान देने वाली कौन होती है-मेरी मर्जी के बिना शादी नहीं होगी। चाहे मुझे बेटी कुंवारी ही क्यों न बैठानी पड़े।”

“हाँ-हाँ-बड़े आये कुंवारी रखने वाले-तब रहेगी न जब मैं रहने दूंगी-मैं कल ही रिश्ता पक्का कर रही हूं-तुम क्या करोगे?"

"अच्छा भागवान तू मेरा पीछा छोड़-साली घर में भी चैन नहीं है-आदमी घर में आता है-दो घड़ी चैन के लिये-तो इस घर में वो भी नहीं मिलता।" इतना कहते हुये मामा उठ कर बाहर चल दिये।

लता ने मामा मामी को एक-एक स्वर सुना था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे?

काम से निबटने के बाद लता अपने बिस्तर पर लेटी थी।

पर उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी। उसके दिमाग में बूढा मुकन्दी घूम रहा था।

मुकेश ने अभी कुछ दिन शादी न करने का फैसला दिया है। मामी है कि कल ही शादी कर देना चाहती है। अब वह क्या करे?

लता की आंखों में अपनी सहेली प्रेमा की शादी आ गई। , उसके पिता ने कितनी धूमधाम से शादी की थी। कोई सामान ऐसा न था जो प्रेमा के पिताजी ने उसे न दिया हो और फिर प्रेमा का पति कोई कम न था। सुन्दर नौजवान एम० ए० पास अपनी फैक्ट्री का मालिक था। प्रेमा की शादी में लता को यही ख्याल आता रहा। था-कभी उसकी भी शदी मुकेश के साथ इसी प्रकार होगी। मामा। मामी ऐसे ही उसे भी विदा करेंगे।

एक बार तो लता मुकेश के ख्यालों में इस प्रकार खो गई, कि वह जान ही नहीं प्राई थी कि कुछ सहेली और वहाँ आ गई हैं और फिर उन्होंने उसकी इतनी मजाक बनाई कि वह परेशान हो उठी थी।

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