सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
तभी प्रेमा ने चुटकी ली थी-“यार लता क्या बात है-कहो तो मुकेश को बुलाकर अपने साथ तेरी भी शादी करवा दूँ।"
“धत् मैं ये सब नहीं सोच रही थी।” लता ने शरमाकर कहा।
“और क्या सोच रही थी?" प्रेमा ने मुस्कुराते हुये कहा।
तभी बाहर से प्रेमी की मां की आवाज आई-"ऐ लड़कियों दुल्हन को बाहर लाओ।" और सब प्रेमी को बाहर ले जाने लगीं।
लता ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गई-"अरे ये तो सपना था।" लता मन ही मन बुदबुदाई। तभी उसने मन में सोचा मैं मामी का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने दूंगी। मैं जान दे दूंगी, लेकिन मुकन्दी।
विकास ने जैसे ही कमरे में कदम रखा। वैसे ही सामने उसे अपने डैडी नजर आये। डैडी को देखते ही उसका दिल कांप उठा। विकास ने अपने को संयत किया।
"हैलो डैडी आप कब वापस आये।" विकास ने बड़े प्यार भरे स्वर में पूछा।
“मैं सुबह ही आ गया था-पर तुम सुबह से कहाँ थे। सेठ दयानाथ ने पूछा।
"वो डैडी मैं अपने एक दोस्त के साथ गया था।"
"कौन दोस्त है तुम्हारी सुबह से तुम्हारे साथ था।” अब सेठ दयानाथ का स्वर.कुछ कठोर हो चला था।
"डैडी आप उसे नहीं जानते...वो अभी-अभी ही मेरा दोस्त बना है।"
"मैं सब जानता हूं विकास-तुम क्या समझते हो-तुम सोचते हो-तुम जो कर रहे हो-कोई नहीं देख रहा-क्योंकि डैडी तो बाहर, गये हैं-पर याद रखो-मुझे तुम्हारी एक-एक हरकत का पता चलता
रहता है।” सेठ दयानाथ ने दांत पीसते हुये कहा।
"पर डैडी मैंने तो कुछ भी नहीं किया।”
"शटअप...तुम मुझे...अपने बाप को ही बेवकूफ बनाना चाहते
हो।” दयानाथ चीख उठे।
विकास कुछ भी नहीं बोल पाया। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
"सुनो...कल से तुम मेरे साथ दफ्तर जाओगे।"
"पर डैडी...कल तो मुझे एक जगह जाना है।” विकास ने विरोध करते हुये कहा।
“कहाँ जाना है?"
“वो...डैडी...मेरे एक दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है.धह अस्पताल में है।"
"कौन...क्या नाम है उसका?"
"जी..मुकेश।”
"उसे हम देख आयेंगे। तुम आफिस जाओगे।"
“जी...आप जायेंगे।” विकास का मुंह आश्चर्य से खुला रहे। गया।
"लेकिन डैडी...वो।”।
"अब तुम जाओ और सुनो। अपने दोस्त सोच-समझकर बनाया करो...तुम अब छोटे बच्चे नहीं हो...तुम सेठ दयानाथ के लड़के हो...चोर उचक्कों के साथ घूमते अच्छे नहीं लगते।” सेठ दयानाथ का स्वर व्यंगात्मक था।
विकास अपने डैडी की बात समझ गया था। उसने तुरन्त ही वहाँ से खिसक जाना उचित समझा।
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