सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
अपने कमरे में जाकर उसने नाइट सूट पहना और अपने बिस्तर पर लेट गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि डैडी को किसने उसके बारे में रिपोर्ट दी है...और वह भी अक्षरशः सही।
काफी देर तक सोचने के बाद भी जब उसकी कुछ समझ में नहीं आया...तो उसने सिर झटक कर उसे ख्याल को निकालना चाहा।
विकास ने सिगरेट सुलगाई और लम्बे-लम्बे कश लेने लगा। जैसे सिगरेट के साथ अपने विचारों को भी धुयें में उड़ा देना चाहता हो।
लता देर तक अपने ख्यालों में खोई रही। फिर न जाने उसकी आंख लग गई। सुबह जब उसकी आंख खुली तो सुबह के पांच बज रहे थे। लता ने जल्दी-जल्दी कपड़े बदले और धीरे-धीरे मामी के कमरे की तरफ गई।
मामी, मामा अभी सो ही रहे थे। मामी के खर्राटे कमरे से निकलकर बाहर आ रहे थे। लता ने दरवाजा खोला और दूसरे क्षण वह घर से बाहर थी। वह दृढ़ निश्चय के साथ तेज-तेज कदम बढ़ाती चली जा रही थी।
लता के कदम मुकेश के घर की ओर बढ़ रहे थे।
लता जानती थी। वह जो करने जा रही है। वह गलत है। शायद मुकेश भी इसे स्वीकार न करे। लेकिन इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी न था। अगर वह इस घर को नहीं छोड़ेगी। तो कभी भी नहीं छोड़ पायेगी और फिर उसे मुकंदी लाल के साथ नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।
मुकन्दी लाल का ख्याल आते ही उसे लगा जैसे सैंकड़ों कुत्ते उसके पीछे लगे हों और वह उनसे पीछा छुड़ाने के लिये भागने लगी।
लता के कदम सीधे मुकेश के मकान के पास जाकर रुकें।
दरवाजे को देखते ही वह स्तब्ध रह गई। दरवाजे में ताला लटक रहा था। लता खुद-ब-खुद बड़बड़ा उठी। इतनी सुबह मुकेश कहाँ गया होगा अब मैं क्या करूं।"
लता काफी देर तक वहीं खड़ी रही। वह सोच रही थी। हो सकता है मुकेश अभी आ रहा हो शायद सुबह घूमने जाता हो। देर तक मुकेश नहीं आया तो उसने बराबर का दरवाजा खटखटा दिया। कुछ देर बाद ही एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला-क्या बात है बेटी?"
"अम्मा जी जो इस कमरे में रहते हैं...वो कहाँ गये हैं।" लता ने उस बूढ़ी औरत से पूछा।
"पता नहीं बेटी...कल शाम से ही यह घर नहीं आया है।"
"कुछ बता सकेंगी.कब तक आयेंगे।"
‘नहीं बेटी हम तो नहीं जानते...तुम्हे जो कहना हो...बता ‘दो...हम कह देंगे।” बुढ़िया ने कहा। | "मैं फिर आ जाऊंगी।" इतना कहते ही लता वहाँ से चल. दी। पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था अब कहाँ जाये।
...अब उसके सामने एक ही रास्ता था आत्म हत्या। उसने मन ही मन निश्चय किया। मुकंदी से शादी से तो अच्छा है मौत।
यही विचार करते हुये लता चली जा रही थी। उसे अपने आस पास का कोई ख्याल नहीं था। तभी एक चमचमाती हुई कार उसके सामने रुक गई।
"ऐ मैडम मरने का इरादा है। कार में से आवाज आई।
"है...क्या..." हड़बड़ा कर लता के मुंह से निकला।
"अरे लता तुम।" ये आवाज विकास की थी कार की ड्राइविंग सीट पर विकास बैठा था।
"......।" लता घबराहट में कुछ भी कह न पाई।
"क्या बात है लता...इस समय कहाँ से आ रही हो...तुम घबराई हुई क्यों हो?” विकास का स्वर आज रोज से बदला हुआ थी।
तुम ये सब पूछने वाले कौन होते हो...मेरा रास्ता छोड़ो...मैं अपनी मर्जी की मालिक हूँ कहीं भी जाऊं। लता भूखी शेरनी की तरह दहाड़ उठी।
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