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राजहंस का नवीन उपन्यास
"देखो लता...वैसे तो हमारी इतनी बड़ी कोठी है पर मेरे डैडी बड़े सख्त मिजाज, के आदमी हैं। तुम्हें देखते ही वह कोठी सिर पर उठा लेंगे।"
“विकास मैं नहीं चाहती हूं कि मैरे कारण तुम भी परेशानी में पड़ जाओ। इसीलिये यही ठीक रहेगा कि मैं यहाँ से चली जाऊं।"लता के चेहरे पर जो इत्मिनान पैदा हुआ था। विकास के' शब्दों से वह फिर खत्म हो गया था।
"अरे भई मैं तुम्हें जाने के लिये नहीं कह रहा हूं।” विकास ने देखा । रामू काका ट्रे हाथ में उठाये चला आ रहा है। वह एकदम चुप हो गया । रामू को देखते ही विकास के दिमाग में एक आईडिया उत्पन्न हो गया। उसके चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। उसने चुटकी बजाई ‘फिर एक विशेष प्रकार से सीटी बजानी शुरू कर दी।
अब तक लता कुर्सी पर बैठ चुकी थी।
रामू ने मेज पर चाय व नाश्ता लगा दिया और बोला-
"छोटे सरकार और कुछ चाहिये?"
“नहीं काका...पर तुमसे एक बात करनी है।" विकास ने कहा।
"कहिये सरकार ।”
"काका बात ये है कि ये जो लड़की है नं...इसके मां बाप नहीं हैं। ये अपने मामा-मामी के पास रहती है। इसकी मामी इसकी शादी बूढ़े से करना चाहती है। सो ये घर छोड़कर आ गई है। अब वहाँ जाना नहीं चाहती। अब बताओ क्या किया जाये?"
"हम को बताई सरकार...ऐ तो बड़ा उलझा मामला है।”
"काको घर में डैडी रहने नहीं देंगे इसे।”
"हाँ सरकार...बड़े सरकार तो हमको भी घर से निकाल। देंगे।" रामू ने डरते हुये कहा।
“काका एक बात मेरे दिमाग में आई है।"
“क्या बात?”
“काका इसमें तुम्हें इसकी मदद करनी होगी।"
"अगर हम कर सकेंगे तो जरूर करेंगे...अगर हम इस बेचारी के काम आ सके तो काहे नहीं आयेंगे।”,रामू के स्वर में पीड़ा थी।
"ऐसा है काका...जब तक इसे मकान नहीं मिलता...तुम अपने घर में रख लो। मैं आज ही इसके लिये कहीं एक कमरे का इंतजाम करता हूं..फिर जब डैडी आयेंगे...तो तुम इसके लिये नौकरी की बात डैडी से करना। ये बी० ए० पढ़ी है। तुम्हारी बात डैडी अवश्य ही मान लेंगे।”
"ठीक है सरकार...पर अभी नाश्ता कर लो...ठण्डा हो रहा है।" रामू ने कहा और सोचता हुआ रसोई घर की ओर चल दिया।
विकास व लता दोनों नाश्ता करने लगे।
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