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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"घर...।" लता अपने ख्यालों में खो गयी। वह कौन से घर....जाये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था। मामी का घर वह सदा के लिये छोड़ आई थी। वहाँ जाने का मतलब था...जिस नर्क से ... निकली है उसी में फिर से पहुंच जायेगी। उसे अपनी मामी का क्रोध से भरा चेहरा याद आ गया। लता का पूरा शरीर कांप उठा। मामी से जो मार आज तक खाती रही थी। उसके ख्याल ने उसके पूरे शरीर में कंपकंपी पैदा कर दी।

“लता...।" लता तुरन्त ही बोल उठी।

“लता...क्या बात है...तुम इस तरह क्यों कांप रही हो।”

"नहीं... नहीं, तो..मैं कांप तो नहीं रही हूं।” लता का स्वर हकला गया।

"सुनो तुम्हारी हालत देखते हुए...मैंने महसूस किया हैं...तुम कुछ छिपा रही हो...बोलो लता...मुझसे छिपाओ नहीं...मैं जितनी मदद कर सकता हूं...अवश्य करूंगा।” विकास का स्वर अपनत्व भरा था।

लता अन्दाजा नहीं लगा पा रही थी कि विकास सच बोल रहा है या उसे फंसाना चाहता है। आखिरकार लेता ने विकास को , सब कुछ बताने का फैसला कर लिया।

लता को चुप देखकर विकास ने फिर कहा-“लता बोलो क्या बात है...अगर नहीं बताना चाहती हो तो ठीक है...अब मैं पूछूगा भी नहीं।" कुछ रुककर विकास ने फिर कहा-"चलो लता मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊं।"

"नहीं...नहीं मैं अपने आप चली जाऊंगी।" लता कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

"देखो लता यहाँ से तुम्हारा घर काफी दूर है। जल्दी से कोई

बस भी नहीं मिलेगी...अगर मेरे साथ नहीं जाना चाहती तो रामू काका को साथ भेज दें।"

"बात ये है विकास...मैं अब उस घर में नहीं जाऊंगी।” लता ने सिर झुकाये हुये दर्द भरे स्वर में कहा।

“क्या...मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा।” विकास ने अनजान ' बनते हुये कहा। वैसे विकास लता का निर्णय सुनकर चौंक उठा।

“हाँ विकास...मैं उस घर को सदा के लिये छोड़ आई हूं...मैं क्या जानती थी कि मुकेश मुझे इस प्रकार धोखा देगा।" लता रोने लगी थी।

“अब तुम क्या करोगी...कहाँ जाओगी...लता तुम्हें घर नहीं छोड़ना चाहिये था।" विकास मन ही मन खुश हो रहा था कि शिकार खुद ही उसके जाल में फंसने चला आया है।

"लेकिन मैं क्या करती...क्या उस कब्र में पैर लटकाये बैठे बूढ़े से शादी कर लेती...अब जो भी किस्मत में होगा...सहन करूंगी...अच्छा विकास मैं जा रही हूँ।” लता ने कहा- और चल पड़ी।

"अरे लती रुको।” विकास जैसे नींद से जागा हो वह लता के ख्यालों में खो गया था।

"क्या है?" अभी तक लता दरवाजे के पास पहुंच गई थी। उसने वहीं से पूछा।

"रुको लता...इतना बेशर्म नहीं हूं मैं कि तुम्हें मुसीबत में अकेला छोड़ दें...सहपाठी के नाते मेरा भी कुछ फर्ज है...अगर इस सप्य नहीं काम आऊंगा तो कब काम आऊंगा।"

"लता ने राहत की सांस ली वह सोचने लगी चलो मुकेश तो धोखा दे गया...पर भगवान ने विकास को भेज दिया...मेरी मदद के लिये और मैं इसके साथ सदा ही बुरा व्यवहार करती रही।"

तभी उसके कान में विकास का स्वर पड़ा।

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