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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

मामा ने कपड़े बदले और डेरी की तरफ चल दिये। दूध लाने का रोज का काम लता का ही था। इसीलिए मामा के दिमाग में यह बात आई थी। मामा ने दूध की डेरी के पास पहुंचकर चारों ओर नजर दौड़ाई पर वहाँ पर लता नहीं थी अब मामा का माथा ठनका।

आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि इतनी सुबह-सुबह

लता इस प्रकार बिना बताये कहीं गई हो। मामा जल्दी-जल्दी कदम ‘बढ़ाते हुए घर वापस आये। वह अपने कमरे में घुसे और धम से अपने पलंग पर बैठ गये। उनका शरीर पसीने से लथपथ था।

मामी ने उनकी ओर देखा तो घबरा उठी-"क्यों जी...क्या बत है...तुम्हें क्या हो गया इस प्रकार पसीने से भीग रहे हो जैसे नहाकर आये हो।”

मामा ने कोई जवाब नहीं दिया।

"अजी बोलते क्यों नहीं।” फिर दरवाजे की तरफ मुंह करके चिल्लाई-

"अरी लता जल्दी से इधर तो आ।”

"लता कहीं भी नहीं है।" धीरे से मामा ने कहा और फिर छत की ओर देखने लगे।

"क्या कहा...लता नहीं है। पर वो हरामजादी इतनी सुबह-सुबह कहाँ गई?”

"अरी भागवान तेरी ये गालियां ही हैं..जो उस बेचारी को जीने नहीं देंगी।" तभी मामी को कुछ ख्याल आया वो उठे और लता के कमरे की ओर बढ़ गये। मामी भी उनके पीछे-पीछे हो ली।

कमरे में लता की मेज पर एक कागज रखा हुआ था जो पेपर वेट से दबा था।

मामा ने आगे बढ़कर उस कागज को उठा लिया और फिर खोलकर पढ़ने लगे। जब उन्होंने उसे पढ़ लिया तो उसे मोड़कर जेंव में रख लिया। और वहीं कुर्सी पर बैठ गये।

"अजी क्या लिखा है, इस मरे कागज में।”

“तेरा सिर लिखा है इसमें।” मामा ने क्रोधित स्वर में कहा।

"क्या...कहा?"

"मैं पहले ही जानता था...ये तेरा व्यवहारं एक दिन कुछ अनहोनी जरूर करेगा...अब घी के दिये जला ले...तेरे सिर से भार हट गया। मेरी बच्ची इस घर को छोड़कर चली गई।" और फिर मामा सिर पकड़कर रोने लगे।

“क्या कहा...घर छोड़कर चली गई...पर कहाँ गई।” मामी ने आश्चर्य से मुंह फाड़ते हुये कहा।

"अब मैं क्या बताऊं।"

"अजी मुझे क्यों कोसते हो...मैं तो पहले ही कहूं थी...ज्यादा न पढ़ाओ...पर तुम्हें ही लगी थी पढ़ाने की...अब अपनी-करनी का फल भोग लो...भागी होगी अपने यार के साथ।"

 

"देख मुझे गुस्सा न दिला...तू ही उसे दिन रात गालियां देती थी और अब उसे बूढ़े से ब्याहना चाहती थी...जरूर रात उसने तेरी बातें सुन ली होंगी। तभी मेरी बच्ची ने घर छोड़ा। पता नहीं कहाँ भटक रही होगी बेचारी...हे भगवान अब मैं अपनी बहन को क्या जवाब दूंगा।” और मामा सिर पर हाथ रखकर बैठ गये।

तभी मामी को ख्याल आया...आज मुकन्दी लता को देखने आयेगा। उसके चेहरे पर घबराहट के चिन्ह उभर आये।

"अजी मैं अब मुकन्दी को क्या जवाब दूँगी।” और फिर, जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।

मुकेश की दोनों टांगों की हड्डी टूट गई थी। अतः जब तक प्लास्टर न उतर जाये उसे अस्पताल में ही रहता था। उसका कोई सगा सम्बन्धी भी नहीं था। जो उसकी खबर लेता। उसे यह भी पता नहीं था कि उसे अस्पताल में कौन व्यक्ति दाखिल करवा गया था।

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