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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

डाक्टरों की जुबानी ही उसने जाना था कि कोई लड़का अपनी गाड़ी से उसे वहाँ दाखिल करवा गया था...पर उसके बाद वह उसे देखने भी नहीं आया था।

मुकेश को अक्सर लता का ख्याल आ जाता था। विस्तर पर पड़े-पड़े यही सोचता...पता नहीं लता कैसी है? उसे क्या पता की उसकी क्या हालत है। अब तो तभी कुछ पता चल सकेगा...जब वह इस अस्पताल से छुट्टी पा लेगा। इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ मुकेश अपना समय काट रहा था।

विकास ने लता के लिये एक कमरे का फ्लैट का इतजाम कर लिया। पर अभी लता को नहीं बताया ! फ्लैट में उसने जरूरत , की हर चीज का इन्तजाम कर दिया। जो आदमी की जरूरत की वस्तु थी। फिर अपने बंगले पर वापिस चल दिया।

गाड़ी गैराज में खड़ी कर वह अपने कमरे में गया। वहाँ उसने मुंह हाथ धोये और एक बढ़िया सूट निकाल कर पहना और अपने को शीशे में निहारने लगा। जब वह तैयार हो गया तो रामू

काकी को आवाज लगाई।

रामू दौड़ता हुआ विकास के कमरे में पहुंचा।

“छोटे सरकार आपने हमको बुलाया।” रामू ने विकास से पूछा।

“हाँ काका...लता कहाँ है?"

"वो सरकार..उसको हम अपने कमरे पर छोड़ आये थे...वहीं

होगी।” रामू ने बताया।

“बस काका यही पूछने के लिये बुलाया था।"

"छोटे सरकार...अगर बुरा न मानों तो हम एक बात पूछे।" रामू ने डरते हुए कहा।

"क्या बात है काका?" विकास रामू का आशय नहीं समझ पाया।

"सरकार उस लड़की को, क्या आप पहले से जानते रहे।"

"हाँ काका वो मेरे साथ कालेज में पढ़ती थी। उसने भी अब की बार बी० ए० का इम्तहान दिया है।"

“सरकार बड़े सरकार को उसके बारे में क्या कहें?"

“काका डैडी को नहीं बताना कि मैं उसको जानता है...तुम अपने आप ही कुछ बताकर नौकरी के लिये कहना।" विकास ने समझाते हुये कहा।

"अगर बड़े सरकार ने मना कर दिया...तब क्या होगा?" रामू काका ने परेशान स्वर में कहा।

"अरे काकी उस समय कहना जब मैं रहूं..फिर मैं सब सम्भाल लूंगी...तुम कोई चिन्ता न करना।" विकास ने दिलासा देते हुये कहा।

"सरकार कुछ चाहिये?" रामू ने चलते हुये कहा।

"अरे रामू काका रुको...वो जरा लता को बुला लाओ...मैंने उसके लिये कमरे का इंतजाम कर दिया है...पर तुम उसे कुछ नहीं कहना।"

"अच्छा सरकार...." रामू का चेहरा खिल गया। और तेज कदमों से लता को बुलाने चला गया।

सेठ दयानाथ ने अपने नौकरों के लिये कमरे अपने बंगले के अहाते में ही एक तरफ बनवा रखे थे। इससे नौकर व मालिक, दोनों को आराम था।

रामू काका की कमरा सबसे पहला था। सो वह जल्दी-जल्दी लता को बुलाने चल दिया।

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