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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

रामू सुबह से परेशान था। जब से विकास ने लता को उसके कमरे में रहने को कहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उस छोटे से कमरे में वह लता को सुलायेगा या खुद सोयेगा।

आसपास के नौकर देखेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे, क्योंकि जब से रामू इस घर में आया था...उसका कोई रिश्तेदार उसके घर नहीं आया था। फिर सालों बाद यह लड़की...वह सबसे क्या बतायेगा। इन्हीं ख्यालों में डूबा रामू अपने कमरे के नजदीक पहुंच गया।

रामू के जाने के बाद विकास लता के ख्यालों में खो गया। वह लंता के पास जाने के लिये तैयार हुआ था। पर बाद में उसने सोचा नौकरों के कमरों की तरफ वह कभी नहीं गया। आज अगर एक लड़की से मिलने पहुंचा तो नौकर क्या सोचेंगे।

विकास चाहे बाहर कैसा भी था। अपने घर में काफी सच्चा शरीफ माना जाता था। वह यह नहीं जानता था कि आज लता के कारण वह मजाक का विषय बने। इसीलिए उसने रामू को लता के पास भेजा...और अब वह लता के आने का इन्तजार कर रहा था।

विकास ख्यालों में खोया था कि चौंक उठा। बाहर खड़ी लती कह रही थी-"मैं अन्दर आ सकती हूं।"

“हाँ-हाँ क्ता आओ...मैं तुम्हारा ही इतजार, कर रहा था।

विकास ने कहा।

“कहिये...आपने किसलिये बुलाया?" लता ने अन्दर आते हुये कहा।

"अरे ये कहिये और आप कहाँ से आ गया।” विकास ने चौंकते हुये कहा।

"इस समय मैं आपके ही सहारे पर हूं...और अपने मददगार को मान देना छोटे आदमियों को फर्ज है।" लता ने सिर झुकाते। हुये कहा।

“सुनो भई लता...तुम हम तो वही कालेज के सहपाठी हैं...तुम बस नफरत निकाल दो अपने मन से...जो आज तक तुम्हारे अन्दर है...बस मेरे लिये वही काफी है लता।” विकास का स्वर भावुक उठा।

"वो..मेरी भूल थी विकास।” लता ने याचना भरे स्वर में कहा।

"अरे भई छोड़ो इन बातों को...तुम्हें एक खुशखबरी सुनाता हूँ।"

"क्या..?"

"अरे पहले बैठ तो जाओ।" विकास ने कहा और उसकी हाथ पकड़कर कुर्सी पर बिठा दिया। 

लता घबरा उटी। उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि विकास इतना बेतकल्लुफ हो जायेगा।

“हाँ अब सुनो।” विकास ने मुस्कुराते हुये कहा।

“कहो।”

“अब हुई न बात...मैंने तुम्हारे लिये फ्लैट का इन्तजाम कर दिया है...और उसमें जरूरत का पूरा सामान भी डलवा दिया है...बस अब तुम्हारे वहाँ चलने की देर है।"

“ओह विकास...मैं समझ नहीं पा रही हूँ...तुम्हारे इस कर्ज को किस प्रकार उतार पाऊंगी।”

"अरे यार...वो तो सब उतर जायेगा...चिन्ता मत करो। फिर पूछा-"आज चलना है या कल।"

"जब मिल गया तो आज क्या अभी ही चली जाऊंगीक्योंकि रामू काका को भी परेशानी होगी।"

"ओ० के०।” फिर विकास ने रामू को आवाज लगाई-“रामू काका।”

"आया छोटे सरकार।" रामू दौड़ता हुआ आया।

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