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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“ये क्या करते हो?"

“कुछ नहीं मिठाई खिला रहा हूं।"

“विकास सच बोलो क्या तुम्हारे डैडी ने नौकरी के लिये हाँ कर दी।"

"हाँ लता...और नौ बजे रामू काका यहाँ आयेंगे तुम्हें लेने। वो तुम्हें फैक्ट्री पहुंचा देंगे।"

“ओह विकास...सच मैं आज कितनी खुश हूं...मैं यही सोच कर परेशान थी अगर डैडी ने नौकरी नहीं दी तब मेरा क्या होगा।" लता का चेहरा खुशी से खिल उठी था।

"अच्छा लता मैं चलता हूं...नौ बजे तैयार रहना।" विकास उठ खड़ा हुआ।

"ओ० के०।” विकास ने हाथ हिलाया।

लता का हाथ हिला फिर विकास की गाड़ी हवा से बातें करने लगी।

लता विकास के डैडी के विषय में सोचने लगी। विकास व। रामू काका के अनुसार विकास के डैडी एक कठोर. व्यक्ति थे जो जरा सी भी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते थे। उसके दिल में। हल्की सी घबराहट थी। ये पहला मौका था जब. अनेक पुरुषों के बीच उसे काम करना था फिर यह भी नहीं जानती किं कैसा काम मिलेगा। विकास ने सिर्फ यही बताया है कि नौकरी मिल गई है।

लता को ध्यान सामने लगी घड़ी पर गया तो वह चौंक उठी। घड़ी साढ़े आठ बजा रही थी। अभी तक लता नहाई भी नहीं थी। लता ने जल्दी से आलमारी से एक साधारण सी गुलाबी रंग की साडी निकाली उसी से मैच करता ब्लाऊज और फिर जल्दी से बाथरूम में घुस गई।

नौ बजने में अभी दस मिन्ट थे जब लता पूरी तरह से तैयार हो गई थी। लता सोफे पर बैठ गई। बैठते ही फिर उसकी आंखों में एक भारी भरकम चेहरा आ गया। लता ने सेठ जी की कोठी पर लगी उनकी तस्वीर ही देखी थी और उसी से सेठ जी की पर्सनल्टी का हिसाब लगाया।

खट..खट..खट।

लता चौंक उठी। उसने उठकर दरवाजा खोला। रामू सामने खड़ा था।

“बिटिया तैयार हो।" रामू ने लता से पूछा।

“हाँ काका एकदम तैयार हूं...अन्दर आओ।" लता ने रामू से कहा।

"अब बिटिया जल्दी सलो नहीं तो देर हो जायेगी।" रामू ने बाहर खड़े-खड़े ही कहा।

“अच्छा काका।” लता ने कहा और बाहर आई। दरवाजे में ताला डाला और रामू के साथ चल दी।

कई दिनों बाद आज लता घर से बाहर निकली थी। ये जगह शहर से काफी दूर थी फिर भी लता को एक अनजान सी भय।। लग रहा था। वह हर व्यक्ति से अपने को छुपा रही थी। बार-बार लता को मामा का ख्याल आ रहा था। .. . ..

"बिटिया बस में चलें।" रामू ने अचानक लता से पूछा।

"नहीं काका बस में नहीं।" लता के चेहरे पर घबराहट के चिन्ह थे।

"क बात है बिटिया...तुम कुछ डरी-डरी लग रही हो।” रामू ने लता से पूछा।

"बात ये है काका आज पहली बार नौकरी के लिये जा रही हूं। इसी से कुछ डर सा लग रहा है...काका सोचती हैं अगर सेठ जी ने नौकरी नहीं दी तो मेरा क्या होगा।" लता दिल की बात छुपा गई।

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