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राजहंस का नवीन उपन्यास
"अरे नहीं बिटिया...सेठ जी अपर से जितने कठोर हैं अन्दर से उतने ही नम्र हैं।” रामू का स्वर विश्वास से भरा हुआ था।
तभी पास से एक टैक्सी गुजरी। रामू ने टैक्सी रुकवाई।
"अरे काका टैक्सी का क्या होगा?" लता ने रामू को। टोका।
"बिटिया फैक्ट्री तक बस जाती है या टैक्सी, स्कूटर। सो बस में तुम जाना नहीं चाहतीं, स्कूटर क्या पता कब मिले। टैक्सी में ही चलते हैं। नहीं तो देर हो जायेगी।"
रामू व लता टैक्सी में बैठ गये। फिर टैक्सी हवा से बातें करने लगी।
जब टैक्सी रुकी तो सामने फैक्ट्री को बोर्ड चमक रहा था। लता ध्यान से उस बोर्ड को पढ़ने लगी। बोर्ड पर लिखा था--"सेठ दयानाथ एण्ड सन।” लता टैक्री से उतरी और पर्स से रुपये निकालने लगी पर तब तक रामू ने टैक्सी ड्राइवर के हाथ में नोट पकड़ा दिया।
“अरे काका ये क्या करते हो।" लता ने रामू को टैक्सी का किराया देते देखा तो बोली।
"अरे, कोई बात नहीं बिटिया।” रामू ने जवाब दिया।
टैक्सी का भाड़ा देकर दोनों फैक्ट्री के अन्दर चल दिये...आगे-आगे रामू चल रहा था और उसके पीछे लता चल रही थी। रामू ने रास्ते में कई लोगों से जैराम जी की की।
लता का दिल एक बार घबराने लगा। जैसे-जैसे आफिस पास आ रहा था। लता का दिल उतनी ही जोर से धड़कने लगा था। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे चमक उठी थीं। जिस कमरे के सामने रामू रुका। उस कमरे के बाहर मैनेजर का बोर्ड लगा था। उसके दरवाजे पर एक चपरासी बैठा हुआ था। रामू को देखते ही चपरासी ने मुस्कुराकर रामू को “राम-रोम” कहा और फिर दोनों, ने कुछ बात की फिर रामू ने मुड़कर लता से कहा-
"बिटिया यही कमरा है अन्दर चली जाओ।"
लता ने दरवाजा खोला अन्दर मेज पर सिर झुकाये कोई व्यक्ति कुछ लिख रहा था।
"क्या मैं अन्दर आ सकती हूं।” लता मेज पर झुके व्यक्ति, का चेहरा नहीं देख पाई।
“यस आओ।" सिर नीचे किये ही कहा।
लता अन्दर पहुंची और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
तभी विकास ने चेहरा उठाया। विकास का चेहरा देखते ही - लता एकदम खड़ी हो गई-“त...तुम ।”
"यस।” विकास के चेहरे पर एक मनमोहक मुस्कान छाई थी।
"लेकिन तुम तो कह रहे थे तुम्हारे डैडी मेरे से बात करेंगे।"
“हाँ लता था तो कुछ ऐसा ही पर डैडी को अचानक कुछ काम पड़ गया। तुम्हारा इन्टरव्यू डैडी मुझे ही करने को छोड़ गये।"
"तो पूछो...।” लता के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई।
"मैं तो पहले ही तुम्हारा इन्टरव्यू ले चुका हूं।” विकास के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी।
विकास ने घंटी पर हाथ मारा तुरन्त ही बाहर बैठा चपरासी अन्दर आया-“जी सरकार।”
“वो रामू काका को अन्दर भेजो।” विकास ने कहा।
रामू अन्दर आया-“कहिये सरकार।”
"वो रामू काका अब तुम जाओ...हाँ चपरासी को दो चाय के लिये कहते जाना।” विकास ने कहा।
जो आज्ञा,सरकार।” रामू ने कहा और चल दिया।
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