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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

मुकेश जानता था कि लता की मामी को स्वभाव कैसा है। आज तक लता उस घर में अपने मामा की बदौलत ही रह रही थी। मामी तो उसे कभी को घर से बाहर निकाल देती।

मुकेश ने लता की ओर देखा और बोला-"अच्छा लता कल मुलाकात होगी।" और फिर वह अपनी दिशा की ओर बढ़ गया।

लता धीरे-धीरे कदम उठाती हुई अपने घर की ओर चल दी।

लता अपने ही विचारों में खोई हुई चली जा रही थी। उसे आस-पास को कोई ख्याल नहीं थी। तभी एक लम्बी गाड़ी उसके सामने आकर ठहर गई। गाड़ी को देखते ही लता चौंक उठी!। उसका चौंकना स्वाभाविक ही था क्योंकि उस गाड़ी में विकास बैठा था। उसके चेहरे पर मक्कारी भरी मुस्कुराहट खेल रही थी।

"हैलो लता इस समय किधर से आ रही हो?” विकास के स्वर में व्यंग था।

"तुम कौन होते हो मुझसे पूछने वाले?" लता का चेहरा क्रोध से आग बबूला हो उठा था।

"गुस्से में तो जानेमन और भी सुन्दर लगने लगती हो।”

"शटअप।”

"और कुछ कहना हो वह भी कह लो...बन्दा हाजिर है।" विकास अभी भी बेशर्मी से मुस्कुरा रहा था।

"तुम हटोगे मेरे रास्ते से या नहीं।" लता पैर पटकते हुए बोली।

"अरे यार हट जायेंगे। हम तो इसीलिये रुके थे कि आपको आपकी मंजिल पर कार से ही पहुंचा दें। हम भी आपके सहपाठी हैं, ऐसी भी नाराजी क्या जो आप हमें देखते ही आग बबूला हो उठती हैं। इस समय विकास ने अपना चेहरा मासूम बना लिया. था। ऐसा लग रहा था इससे शरीफ कोई भी नहीं होगी।

“मिस्टर विकास मुझे आपकी गाड़ी की जरूरत नहीं है। मेरी मंजिल आ गई है।" इतना कहते ही लता ने सामने से आते लड़के को पुकार लिया-

"अरे मोहन तू कहाँ से आ रहा है।"

विकास ने लता को मोहन को पुकारते देखा तो तुरन्त अपनी गाड़ी स्टार्ट की और फिर उसकी गाड़ी हवा से बातें करने लगी।

“अरे दीदी तुम इस समय कहाँ से आ रही हो .?” मोहन ने लटा सवाल कर डाला।

"अपनी सहेली के घर गई थी...वहीं देर हो गई...तू घर जा रहा है।” लता ने बहाना बनाया।

“हाँ दीदी घर ही जा रहा हूं। चलो तुम्हें घर छोड़ता हुआ। निकल जाऊंगा।"

"हाँ चल।” लता ने कहा और उसके साथ चल दी। लता। मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी इस समय।

लता जब अपने घर पहुंची तो काफी समय हो चुका था। वह बाहर ही दरवाजे पर खड़ी होकर अन्दर की आहट लेने लगी। अन्दर उसकी मामी तेज स्वर में मामा से बोल रही थी।

लता ने कांपते हाथों से दरवाजा खटखटाया। कुछ देर बाद मामी के आने की आहट सुनाई दी।

"अरे कौन है इस समय?" चिल्लाते हुए मामी ने दरवाजा खोला।

लता को सामने देखते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया-"अच्छा तो आप हैं देवी जी... घर में घुसने का समय हो गया महारानी जी का... ये इम्तहान देकर आने का समय है।"

"वो...वो मामी मैं एक सहेली के घर चली गई थी।” लता ने कांपते स्वर में कहा।

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