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राजहंस का नवीन उपन्यास
विकास कुछ देर वैसे ही खड़ा रहा फिर धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आज डैडी घर पर कैसे हैं। उसे तो पता चला कि आज डैडी को मद्रास जाना हैं काम के सिलसिले से और इसीलिये वह क्लब में रह गया था।
काफी देर सोचने पर भी जब वह कुछ नहीं सोच सका तो उसने बिस्तर में पड़े-पड़े आंखें बन्द कर लीं।
अब विकास के ख्यालों में लता नाच रही थी। बस के वार्तालाप से विकास यह समझ चुका था कि लता आसानी से हाथ आने वाली चीज नहीं है। उसने पन में दृढ़ निश्चय किया कि वह लता को झुकाकर ही छोड़ेगा।
शाम का समय था। पार्क में चारों और स्त्री पुरुष व बच्चों की चहल-पहल थी। उसी में दूर एक पेड़ के नीचे लतां वह मुकेश बैठे हुए थे। आज ही उनकी परीक्षा समाप्त हुई थी। पेपर खत्म, होने के बाद दोनों यहीं आकर बैठ गये थे।
दोनों ही अपने-अपने ख्यालों में डूबे हुये बैठे थे।
"लता।” लता के बालों से खेलते हुये मुकेश ने कहा।
"हाँ।” लता ने मुकेश की ओर देखा।
“कहाँ खो गई थी। कुछ बोलो न।”
"क्या बोलूं?”
"कुछ भी बात करो।"
"मुकेश अगर बुरा न मानों तो एक बात कहूं।” लता के चेहरे पर दुनिया भर की उदासी घिर आई।
"कहो न...आज तक कभी तुम्हारी बात का बुरा माना है। मैंने जो आज मानूंगा।" मुकेश ने अपनत्व भरे स्वर में कही।
“मुकेश आज परीक्षा समाप्त हो गई है...तुम जानते ही हो मेरी मामी अब जल्दी से जल्दी मुझे घर से निकालना चाहेगी। अगर ...तुम चाहो तो मामी से मेरा हाथ मांग लो...प्लीज मुकेश बोलो क्या तुम ऐसा कर सकते हो?” लता का स्वर दर्द से भरा हुआ था।
“लता...तुम्हारे दर्द को मैं भली प्रकार से समझता हूँ परन्तु क्या करूं मजबूरी भी कोई चीज होती है। अभी परीक्षा ही समाप्त हुई है...अभी मैं एकं बेकार व्यक्ति हूं...अभी तो मैं अपना ही पेट मुश्किल से भर पाता हूं..बताओ तुम्हारा गुजारा कैसे कर पाऊंगा...मैं ये कभी नहीं देख पाऊंगा कि मेरे होते हुये तुम दुःख झेलो...प्लीज लता बस कुछ दिन और...मेरा इन्तजार कर सकोगी ना... बोलो लता।” मुकेश का स्वर याचना भरा था।
“मुकेश, मैं तो उग्र भर तुम्हारा इन्तजार कर लूंगी लेकिन शायद मेरी मामी. ऐसा न कर पाये और मामा वह मुझे अति प्यार करते हैं परन्तु मामी के सामने उनकी न कभी चली और न कभी चल पायेगी।" लता ने कहा।
“लता प्लीज किसी भी प्रकार कुछ दिन की मोहलत मुझे दे दो...उसके बाद मैं खुद ही तुम्हारे मामा से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा।"
"छोड़ो मुकेश जो होना होगा वह तो होगा ही। अब मैं अपने को हालात के भरोसे छोड़ देती हूं..देखो अंधेरा होने लगा है तुरन्त ही घर चलें नहीं तो मामी की गालियां प्रसाद रूप में मिलेंगी।"
दोनों ने आसमान की ओर देखा। बातों में दोनों इतने खो गये थे कि समय का ध्यान ही नहीं रहा था।
"चलो लता तुम्हें घर छोड़ दें।" मुकेश ने साथ चलते हुए कहा।
"नहीं मुकेश मैं चली जाऊंगी। तुम्हारे साथ अगर किसी ने देख लिया तो प्राप्त तक बात पहुंच जायेगी।” लता ने बेबसी भरे स्वर में कही।
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