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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

थोड़ी देर में ही दोनों अपने को छुड़ाकर एक ओर भागते क्ले गये।

मुकेश ने अपने कपड़े फाड़े, उसके माथे से खून बह रहा था। जेब से रूमाल निकाला और माथे का खून पोंछने लगा। तभी उसकी नजर सामने खड़ी लड़की पर पड़ी।

"अरे आप अभी यहीं खड़ी हैं।” मुकेश ने उसके पास जाते हुये कहा।

“जी...वो...मेरे कारण आपके चोट लग गई।" उसने धीरे से कहा।

"मेरी चोट तो ठीक हो जायेगी...पर यदि वो गुण्डे आपको ले जाते...तब क्या होता।” मुकेश के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

"पता नहीं वो मेरे पीछे कैसे लग गये।”

"मेरे ख्याल से तो वो काफी समय से आपके पीछे लगे . थे...आज उन्हें मौका मिल गया था।" मुकेश ने उन गुण्डों की बात को यसै आईडिया लगाया था।

"पर क्यों?"

"शायद आपकी सुन्दरता से प्रभावित होकर।" मुकेश ने उसे देखते हुये कहा।

लड़की शरमा गई अपनी सुन्दरता का जिक्र सुनकर...वास्तव में वह काफी सुन्दर थी, पूरे कालिज में उसकी सुन्दरता का चर्चा था। लड़के उससे बात करने के लिये सदा ही ललायित रहते थे। पर वह थी कि, किसी को आज तक लिफ्ट ही नहीं दी थी उसने।

उसे चुप देखकर मुकेश ने कहा-"आप शायद कालेज जा रही थीं।"

“जी हाँ।”

"जाइये देर हो जायेगी।"

“अब मैं कालेज नहीं जाऊंगी।"

"क्यों?"

"आप एक कृपा और कर दीजिये।"

"आज्ञा दीजिये।"

"मेरे साथ मेरे घर तक चलिये।"

"ठीक है चलिये...पर मुझे आज इन्टरव्यू देना है। मुकेश ने अपनी समस्या बताई।

“किस जगह।"

"कोई सेठ शान्ति प्रसाद एण्ड कम्पनी है वहीं जाना है।"

"तब आप चिन्ता मत करिये देर होने से कोई परेशानी नही होगी।" लड़की ने बताया।

"क्यों क्या आप उन्हें जानती हैं। मुकेश ने पूछा।

“हाँ।”

फिर मुकेश ने कुछ नहीं कहा। उसके साथ चलने लगा, थोड़ी दूर तक दोनों चुपचाप चलते रहे तभी मुकेश ने कहा-

"सुनिये।"

“मेरा नाम सुनिये नहीं सुनीता है।” सुनीता ने मुस्कुराते हुये कहा।

"ओह...हाँ अरे मैं आपका नाम तो पूछना ही भूल गया।" मुकेश ने अपनी गलती का अहसास किया।

"और बताना भी भूल गये।"

"अरे हाँ मेरा नाम मुकेश है परन्तु यहाँ आपकी भी कुछ गलती है।"

"मान लिया कि गलती दोनों ने की मामला बराबर।" सुनीता ने कहा इस पर दोनों ही हंस दिये।

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