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राजहंस का नवीन उपन्यास
"परन्तु डैडी मैं क्या जानती थी कि ऐसा हो जायेगा।” सुनीता ने अपनी पैरवी की।
अचानक सेठजी को ख्याल आया अभी तक उन्होंने मुकेश के लिये चाय आदि के लिये भी नहीं कहा। बातों में उन्हें ख्याल ही नहीं रहा था। उन्होंने नौकर को अवाज लगाई-"दीनू।”
“जी सरकार।” एक बूढ़ा सा नौकर कन्धे पर रखा कपड़ा सम्भालता हुआ आया।
"भई कुछ चाय आदि का इन्तजाम करो।"
“अभी लाया सरकार।”
"सेठजी चाय को तो रहने दीजिये...इस समय मैं जरा जल्दी में हूं।” मुकेश तुरन्त बोल उठा।
मुकेश के बोलते ही सुनीता को मुकेश के इन्टरव्यू का ख्याल आया। उसने डैडी से कहा-"अरे वो डैडी मैं तो भूल ही गई।"
"क्या...अभी कुछ और बाकी है।"
“वो डैडी...ये यहाँ देहली से इन्टरव्यू देने आये हैं...उसी के लिये इन्हें जल्दी जाना था...पर. मेरे कारण सब चौपट हो गयी।” सुनीता ने अपने डैडी को बताया।
"कौन सी फर्म में इन्टरव्यू है।" सेठ जी ने मुकेश से पूछा।
"सेठ शान्ति प्रसाद एण्ड कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट के लिये।" मुकेश ने बताया।
मुकेश के मुंह से फर्म का नाम सुनते ही सेठजी खिलखिला कर हंस पड़े। वो सुनीता की शरारत समझ गये थे।
"अरे वाह भई ...अब तुम्हारी नौकरी पक्की...कोई चिन्ताः की बात नहीं है...आराम से बैठो।” हंसने के बाद सेठजी ने कहा।
मुकेश की समझ में ये कुछ भी नहीं आ रहा था यह मन ही मन सोच रहा था...बेटी ने जो कहा वही बाप भी कह रहा है...पर बिना इन्टरव्यू के भला नौकरी कैसी पक्की...अगर इनकी जान पहचान है भी तो अगर इनके कहने से पहले उन्होंने दूसरा व्यक्ति रख लिया...तब वो मुझे कैसे नौकरी देंगे।
"क्या सोचने लगे।” सेठ जी ने मुकेश को चुप देखकर पूछा।
"जी...जी...कुछ भी नहीं।”
"तुम अपनी नौकरी की सोच रहे हो ना।" सेठ जी ने मुकेश से कहा।
“जी...वोः..ऐसा है...मुझे नौकरी की बहुत संख्या जरूरत है...यदि ये नौकरी न मिली...तो मैं परेशानी में फंस जाऊंगा।"
सेठ जी अभी कुछ कहना ही चाहते थे कि सुनीता चाय की ट्रे उठाये कमरे में दाखिल हुई। सेठ जी ने सुनीता को देखा तो बोले-“बेटी तुम इतने चाय बनाओ...मैं मुकेश के विषय में आफिस में बात करती हूं।" इतना कहकर सेठजी दूसरे कमरे में फोन करने चले गये।
सुनीता चुपचाप चाय तैयार करने लगी। कुछ देर बाद सेठ जी कमरे में दाखिल हुये-“लो भई सब ठीक है...कल साढ़े नौ बजे आफिस पहुंच जाना।”
"जी..क्या...नौकरी...लग गई...पर बिना इन्टरव्यू के ही।" मुकेश घबराहट में हकला गया।
"कभी-कभी ऐसा भी होता है।” सेठ जी ने कहा और चाय का कप उठाकर चाय पीने लगे।
"तुम ठहरे कहाँ हो?" सेठ जी ने पूछा।
“जी होटल में।"
"सुनो अभी मैं ड्राइवर को कहता हूं...तुम उसके साथ जाओ और अपना सामान उठा लाओ।”
“पर...सेठ जी...।"
“पर वर कुछ नहीं जो कह रहा हूं करो।” सेठ जी का स्वर सख्त था।
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