सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
"सेठ जी आप मुझे जानते नहीं कौन हूँ...क्या हैं...इस प्रकार किसी अजनबी को अपने घर में रखने का मतलब।” मुकेश नहीं चाहता था कि केले कुछ गलत हो इसलिये उसने साहस करके साफ बात करने का निश्चय किया।
"देखो भई अब से पहले मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं जानता था...पर अब तुम मेरी फर्म के जिम्मेदार मैनेजर हो।”
“क्या...आपकी फर्म।” मुकेश का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया।
"हाँ अई...मैं ही सेठ शान्ति प्रसाद हूं।" और फिर सेठ जी व सुनीता देर तक हंसते रहे।
क्लब से आने पर लता बिना कपड़े बदले ही काफी देर तक अपने बिस्तर पर पड़ी रही। उसके चेहरे पर परेशानी थी आज उसे क्लब के वातावरण को देखकर काफी घृणा हुई थी। दूसरे आज पहली बार उसने जाना था कि विकास शराब का इस्तेमाल करता है और शराब से लता को काफी नफरत थी पर वह विकास से कैसे कहती जबकि विकास ने साफ शब्दों में उससे कह दिया था कि उसकी सेक्रेट्री बनने के लिये उसे उस वातावरण को अपनाना
होगा। उसका अर्थ था या तो लता क्लब में सबके साथ मिलकर शराब पिये, ताश खेले या नौकरी छोड़ दे। नौकरी जिसके बिना वह कहीं की नहीं रहेगी। उसके सपने एक क्षण में ही टूटकर बिखर गये थे।
इन्हीं विचारों में खोये हुये लता की आंख लग गई थी वंह। बिना कपड़े बदले ही सो गई। आधी रात में अचानक ही उसकी। आंख खुली उसे अपने ऊपर आश्चर्य हुआ की उसे नींद कैसे आ गयी।
लता ने उठकर कपड़े बदले, लाइट बुझाई और लेट गई पर अब उसकी आंखों में नींद नहीं थी। लता ने मन ही मन तय किया कि वह अपने को उस वातावरण के लायक बनायेगी लेकिन वह। शराब को हाथ नहीं लगायेगी और इस विषय पर कल ही विकास से साफ-साफ बात करेगी।
वह पूरी तरह विकास के सामने नहीं झुकेगी कुछ विकास को झुकना होगा नहीं तो वह नौकरी छोड़ देगी पर इस गन्दी जिन्दगी को नहीं अपनायेगी। लता ने कालेज के समय में इन क्लबों के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, कैसे वहाँ की चकाचौंध में लडकियां गुमराह हो जाती हैं। उस गुमराही के बाद कभी भी वह शराफत की जिन्दगी नहीं ज़ी पाती।
अब तक खिड़की से भोर की रोशनी कमरे में आनी शुरू हो गई थी, बाहर चिड़ियां चहचहाने लगी थीं। अपने ही विचारों में तल्लीन लता को पता भी नहीं चला कि दिन निकल आया। उसका सारा बदन दुख रहा था। लता ने बिस्तर से उठने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सकी। एक तरफ बदन दर्द दूसरी तरफ सिर का दर्द उसे लगा कि जैसे वह कई दिन की बीमार हो।
कुछ देर लता वैसे ही आंख बन्द करके लेटी रही। फिर उसने अलमारी से बाम की शीशी उठाई और बाम माथे पर मलने लगी। बाम मलने से सिर को कुछ राहत महसूस हुई तब उसने उठकर अपने लिये चाय बनाई। चाय के साथ एक सिर दर्द की टेबलेट ली और फिर अपनी दिनचर्या में लग गई। आज उसका आफिस जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था पर नौकरी की बात थी इसीलिये किसी प्रकार तैयार हुई और आफिस चल दी।
जब लता आफिस पहुंची तो उसने देखा कि विकास की गाड़ी खड़ी थी। इसका मतलब था कि विकास आफिस के अन्दर बैठा था। लता की जर तुरन्त ही अपनी कलाई घड़ी पर गई, घड़ी में दस बज रहे थे। लता ने सोचा चलो अधिक देर नहीं हुई।
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