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राजहंस का नवीन उपन्यास
दीनू रसोई में चाय नाश्ता तैयार कर रहा था। मुकेश को देखते ही बोला-“कहिये साहब क्या लाऊं?"
"कुछ नहीं काका...वो...वो लड़की कौन आई है?” मुकेश के स्वर में हिचकिचाहट थी।
"वो तो सुनीता दीदी की सहेली है।"
"पर वो इतनी तेज क्यों दौड़ रही थी....क्या कुछ गम्भीर बात है?" मुकेश ने पूछ ही लिया।
मुकेश की बात सुन दीनू उसका आशय समझ गया वह जोर से हंस पड़ा।
"अरे साहव आप परेशान न हों...वो तो मीना दीदी की आदत , है...बहुत चंचल लड़की है...जब तक रहेगी...सारा मकान सिर पर उठा रखेगी...देखना अभी मेरी जान खायेगी।”
“तुम्हारी जान...क्या मतलब?"
"अरे साहब..वह आने से पहले ही फोन कर देती है...उसे आलू के परांठे बहुत पसंद हैं...।” दीनू की बात अधूरी ही रह गई। मुकेश ने देखा वह तेज चाल से रसोई की तरफ आ रही थी।
“दीनू काका...।"
मुकेश वहाँ से हट जाना चाहता था...पर उससे पहले ही मीना रसोई में पहुंच चुकी थी। मुकेश को देखकर एक बार मीना सहम गई पर तुरन्त ही बोली-"काको क्या इन्हें काम सिखा रहे हो?"
मीना की बात सुनकर सुनीता खिलखिला कर हंस पड़ी। लेकिन मुकेश झेप. गया। आज तक लता के अलावा मुकेश ने किसी से खुलकर बात नहीं की थी।
“मुकेश बाबू...मीना की बात का बुरा नहीं मानियेगा..ये बहुत चंचल है।" सुनीता ने कहा।
"मेरा नाम सिर्फ मीना है...चंचल नहीं।” मीना के चेहरे पर शरारत थी।
"अरे काका...तुम्हारी चाय तो बीरबल की खिचड़ी बन गई।" मीना ने दीनू से कहाँ।
"बिटिया चाय तो कब की तैयार है।” दीनू ने चाय के सामान की तरफ इशारा किया।
"फिर दो ना।” मीना चहकी।
"सब अन्दर चलें, मैं चाय लेकर आता हूं।" दीनू ने कहा।
मीना व सुनीता कमरे में जाने के लिये मुड़ी परन्तु मुकेश। ऐसे ही खड़ा रहा। मुकेश को खड़े देख मीना ने जोर से सुनीता से कहा-“सुनीता, क्या मुकेश बाबू हमारे साथ चाय नहीं पियेंगे?"
"अरे मुकेश बाबू आप खड़े कैसे रह गये?” सुनीता ने मुकेश से कहा।
"मैं...परन्तु मेरी तो चाय पीने की कोई तमन्ना नहीं है।"
"अरे भई हम इतने तो बुरे नहीं है कि कोई,चाय भी हमारे। साथ न पिये।” मीना ने शरारत भरे स्वर में कहा।
अब मुकेश इन्कार नहीं कर सका और वह भी उन दोनों के, साथ ड्राइंग रूम में पहुंच गया। अभी तीनों बैठे ही थे कि दीनु चाय लेकर पहुंच गया। दीनू ने मेज पर चाय का सामान सजा दिया और सुनीता ने चाय बनाई।
चाय पीते-पीते ही मीना ने मुकेश से कहा-“मुकेश बाबू...सुबह तो आपने कमाल ही कर दिया।"
"कैसा कमाल...मैंने तो कुछ भी नहीं किया।” मुकेश नहीं जानता था कि सुनीता ने मीना से सब कुछ बता दिया है।
"क्या आपने इसे गुन्डों से नहीं बचाया?" मीना ने सुनीता की ओर इशारा किया। "इसमें कमाल तो कुछ भी नहीं हुआ...मेरी जगह अगर और कोई होता वह भी वही करता जो मैंने किया।"
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