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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

मीना समझ गई मुकेश अपनी तारीफ नहीं करवाना चाहता है इसलिये वह चुप हो गई। तीनों ने चाय खत्म की फिर मीना ने सुनीता से पूछा-“कल तो कालेज आयेगी।"

"हाँ क्यों नहीं।”

"अच्छा अब मैं चलती हूं।” मीना ने कहा और उठ खड़ी हुई।

तभी दीनू कमरे में आया-“अरे बिटिया अभी तो तुम्हारे लिये हम परांठे बना रहे हैं।” मीना को जाने को तैयार देख दीनू ने कहा।

“वाह काका, इतनी देर से तो बनाये नहीं अब कह रहे हो। चलो मेरे बदले सुनीता को खिला देना।"

मीना के साथ ही सुनीता व मुकेश भी खड़े हो गये।

 

तीनों बाहर साथ-साथ आये, मीना ने हाथ हिलाया और गाड़ी स्टार्ट की और एक बार फिर गाड़ी का हार्न जोर से चीख उठा।

लता को बिस्तर पकड़े आज तीसरा दिन था परन्तु अब वह

ठीक थी। उसने अपने दिमाग पर काबू पा लिया था परन्तु अभी वह आफिस जाने के काल नहीं हुई थी। कमजोरी काफी आ गई थी और अभी रामू ही उसकी सेवा कर रहा था।

लता ने विस्तर में पड़े-पड़े ही एक निश्चय कर लिया था कि वह विकास को किसी बात के लिये नहीं रोकेगी परन्तु वह गलत रास्तों पर विकास का साथ नहीं देगी चाहे उसे नौकरी ही क्यों न छोड़नी पड़े। वह ऐसा जीवन कभी नहीं बिता सकेगी जिसमें उसे अपनी आत्मा को बेचना पड़े।

आज लता को अचानक मुकेश की याद ताजा हो आई थी। मुकेश जिसने हमेशा ही लता की इच्छा को प्राथमिकता दी। कभी भी लुता की इच्छा के बिना कोई भी काम नहीं किया था। मुकेश के लिये लता ही सब कुछ थी।

लता को याद आ रहा था एक बार जब कालेज से संब. लड़के-लड़कियों ने पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था। मुकेश, पिकनिक पर नहीं जाना चाहता था। उसे किसी काम से गांव जाना था। उसने साफ इंकार कर दिया था परन्तु उसी दिन जब वह लता से अकेले में मिला तो लता ने उसे पिकनिक पर जाने के लिये कहा। लता ने साफ कह दिया था-"तुम नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊंगी।"

मुकेश ने महसूस किया कि लता की इच्छा पिकनिक पर जाने की है। वह यह भी जानता था कि लता को घर से कहीं नहीं जाने दिया जाता है यही सब सोचकर मुकेश तुरन्त ही पिकनिक पर जाने के लिये तैयार हो गया था। कालेज में जब सबने मुकेश को देखा था तो सभी ने आश्चर्य प्रकट किया था।

और उधर एक था विकास जिसे सिर्फ अपनी इच्छाओं का ख्याल था। लता की इच्छा से उसे कोई भी मतलब नहीं था। वह अपनी इच्छायें लता पर लादना चाहता था।

"बिटिया, कुछ ले लो...काफी समय हो गया है।"रामू काका की आवाज लता के कानों में पड़ी।

रामू लता के पलंग के पास खड़ा कह रहा था। लता ख्यालों, की दुनिया से बाहर आ गई।

"काका...अभी इच्छा नहीं है।” लता ने बहाना बनाया।

"ऐसे तो महीने भर भी बिस्तर से नहीं उठ पाओगी...मैंने मौसमी का रस निकाल दिया है।" कहता हुआ रामू रसोई में पहुंच गया।

कुछ ही देर बाद हाथ में मौसमी के रस को गिलास लिये रामू खड़ा था। लता ने रस का गिलास हाथ में थाम लिया।

"बाबा, मैंने तुम्हें परेशान कर दिया।" लता ने रामू से कहा।

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