सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
दूसरे दिन कालेज में मुकेश को अकेला देख लता उसके पास पहुंच गई थी।
"हैलो मुकेश।” लता ने धीरे से कहा।
“कहिये-अभी कुछ कमी रह गई है क्या-कल आपका दिल नहीं भरा परेशान करके।” मुकेश का पारा सातवें आसमान पर था।
“सॉरी-मुकेश-मैं-मैं तो तुमसे माफी मांगने आई हूं। कल जो शरारत की उसके लिये-क्या पाफ नहीं करोगे।" लता का स्वर रुआंसा हो गया था।
"जाइये मेम साहब-मैं यहाँ पढ़ने आया हूँ न कि इस झमेलों में पड़ने-तुमे अमीर लोगों ने तो कालेज को भी ऐश का अड्डा बना दिया है-आपका काम चल जायेगा बिना पढ़े पर हम तो गरीब आदमी हैं हमें कौन काम देगा?”
"मुकेश-बस यहीं पर तुम गलत हो-मैं भी तुम्हारी ही तरह गरीब लड़की हूं-जिसे अपने मामा मामी के सहारे दिन काटने पड़ रहे हैं।” लता की आंखों में आंसू आ गये थे।
“क्यों जी आप मां-बाप के पास क्यों नहीं रहतीं-क्यों वो गांव में रहते हैं क्या?" मुकेश ने भोलेपन से पूछा।
“यो-वो ऊपर रहते हैं?" लता ने आसमान की ओर उंगली उठाई और फिर तेज कदमों से चल दी।
“अरे मेम साहब सुनिये तो सही।” अचानक लता को जाते देख मुकेश चिल्लाया !
"मेम साहब नहीं सिर्फ लता।" पीछे से आवाज मुकेश के कानों में पड़ी। मुकेश ने पीछे मुड़कर देखा। एक सजा संवरा लड़का उसके पास खड़ा था।...
"आपकी तारीफ।” मुकेश ने उससे पूछा।
"मेरा नाम विकास हैं-मैं यहाँ करोड़पति दयानाथ इकलौता बेटा हूं।” विकास के स्वर में पैसे की बू थी।
"आप उसको कैसे जानते हैं?"
"अरे यार-उस तितली को कौन नहीं जानता वह तो हमारे कालेज की जान हैं। हर लड़का उस पर अपनी जान निछावर करता है, पर वह है कि किसी को लिफ्ट ही नहीं देती है। तुम बड़े भाग्यशाली हो जो उसने तुमसे बात की।"
"लेकिन-मुझे तो लिफ्ट की जरूरत नहीं है विकास बाबू। मेरी लिफ्ट आप ले लीजियेगा-क्या आपका मकान बहुत ऊंचा है? मुकेश ने भोलेपन से पूछा था।
“यार तुम तो पूरे गधे हो कहाँ से आये हो यहाँ पढ़ने।” विकास झुंझला गया।
"देखो विकास बाबू हमको गधा वधा नहीं ब्रोलना। हम तुमको गधे, नजर आ रहे हैं क्या-हम गाली नहीं सुनते हैं-जाइये, आप यहाँ से चले जाइये-नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"
तभी कमरे में बिल्ली ने बर्तन गिराया। मुकेश एकदम चौंक उठा। उसने देखा वह अपने बिस्तर पर था। कमरे का दरवाजा खुला था और बिल्ली दूध चाट रही थी।
मुकेश ने बिल्ली को भगाया। दरवाजा बन्द किया और बिस्तर पर लेट गया।
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