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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

लता रसोई में चाय बना रही थी-पर उसके दिमाग में मुकेश घूम रहा था। तभी मापी की गरजदार आवाज सुनाई दी-

“अरी हरामखानी अभी तक तेरी चाय ही नहीं बनी-तो फिर। खाना कब बनेगा? क्या सारी रात भूखे रखने का इरादा है?”

मामी की आवाज ने लता को ख्यालों की दुनिया से बाहर ला खड़ा किया। उसने चाय के पानी की तरफ देखा। सारा पानी जल गया था। गनीमत यही थी कि उसने पत्ती दूध नहीं डाला था।

लता ने जल्दी से पतीली में पानी डाला और फिर चाय बनाने लगी।

चाय ले जाकर मामी व मामा को दी और फिर खुद रसोई में जाकर चाय पीने लगी। लता कमरे में चाय के बर्तन लेने जा रही थी तभी उसकी मामी की आवाज उसके कानों से टकराई। उसके पांव दरवाजे के बाहर ही रुक गये। लता वहीं खड़ी अपने मामा-मामी के बीच होने वाली बातें सुनने लगी।

मामी कह रही थी-"सुनो जी लता अब जवान हो गई है-फिर भगवान की दया से बी०ए० का इम्तहान भी दे दिया है- भगवान ने चाहा तो पास भी हो जायेगी-अब कब तक इसे घर में बैठाये रखोगे?"

"अरी भागवान जब कहीं अच्छा लड़का नजर आयेगा तभी.. तो उसके हाथ पीले करूंगा।" मामा ने कहा।

"अजी लड़कों की क्या कमी है दुनिया में-अरे ये अपना शंकर है। उसी से कहो तो बात करूं मैं।”

"क्या कह रही है तू-उस गुण्डे से मैं अपनी फूल सी भांजी ब्याह दूं। न बाबा-मेरे बस का नहीं है ये काम।” मामा ने अपने कान पर हाथ लगाते हुये कहा।

“तो फिर बैठाये रखो घर में - मैं तो कहे देती हूं-अब तुम्हारी लाडली की देखभाल मेरे बस की नहीं है।" अचानक ही मामी के चेहरे पर क्रोध छा गया था।

"अरी तू कौन सी नौकरी करती है उसकी-वही सारे दिन तेरी नौकरी बजाती है-इस पर भी तू उससे प्यार से दो बोल नहीं बोल सकती।” मामा का स्वर भी क्रोध से भर उठा था।

लता ने झगड़ा बढ़ता देखा तो दरवाजे के पीछे से निकलकर कमरे में बर्तन उठाने चली गई।

लता को देखते ही मामा मामी दोनों चुप हो गये। मामा ने बड़े प्यार भरे स्वर में पूछा-“लता बेटी खाने में कितनी देर है?”

“बस मामा अभी हुआ जाता है। लता ने कहा और फिर रसोई घर में चली गई।

लता के जाते ही मामी ने फिर अपनी बात जारी कर दी-"सुनो जी मैं साफ-साफ कहे देती हूं। इस बार लता की शादी अवश्य ही हो जानी चाहिये-नहीं तो फिर मैं तुम्हारी एक नहीं, सुनूंगी-मेरी जहाँ मर्जी होगी-वहीं शदी कर दूंगी-अब इसे घर में रखना मेरे बस की बात नहीं है-कल को अगर कुछ ऊंच-नीच हो गई - तो हम कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे।”

"अरी भागवान अब अपनी जुबान बन्द भी करेगी या बोलती ही रहेगी।” सुन्दर लाल ने पीछा छुड़ाना चाहा।

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