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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"अजी तुम तो बस मेरी ही जुबान बन्द करते रहो-मैं भी देख लूँगी फिर मौहल्ले में किस-किस की जुबान बन्द करोगे। जब तुम्हारी लाडली तुम्हारा नाम ऊंचा करेगी।” मामी बड़बड़ाती हुई उठी और दूसरे कमरे में चल दी।

विकास के दिमाग पर लता बुरी तरह से छाई हुई थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह लता को कैसे प्राप्त करे। आज तक लता को किसी भी प्रकार अपने काबू में नहीं कर पाया था। लेकिन आज उसने निश्चय कर लिया था कि लता को पाने के लिये वह कोई भी नीच कार्य करे, पर उसे पाकर ही छोड़ेगा।... विकास अपने स्तर पर पड़ा तरह-तरह की योजनायें बना रहा था। पर एक भी उसकी समझ में नहीं आई। अचानक ही वह उछल पड़ा वो मारा। उसके मुंह से आवाज निकली और अनोखे अन्दाज में उसने सीटी बजानी शुरू कर दी।

उसके दिमाग में एक नाम उभरा "मुकेश” वह सोचने लगा। जब तक पुकेश लता के साथ है, तब तक वह लता का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है...लता को पाने के लिये सबसे पहले उसे मुकेश को रास्ते से हटाना होगा। तभी वह अपनी मंजिल पर पहुंच पायेगा।

विकास का हाथ पास ही रखे फोन की ओर बढ़ गया। और वह एक नम्बर डायल करने लगा...नम्बर तुरन्त ही मिल गया।

"हैलों जग्गा!” विकास ने अपने दोस्त जग्गा को फोन मिलाया !

"हैल्लो विकास, क्या यार नींद नहीं आ रही है। उधर से। आवाज आई।

“यार कल मिल सकोगे।” विकास ने उसकी बात का उत्तर . न देकर अपनी बात की। “क्या कोई जरूरी काम आ पड़ा है।” जग्गा ने पूछा।

“हाँ यार है तो जरूरी ही।"

"कहाँ मिलें घर पर।”

"अरे नहीं यार घर में तो डैडी मेरी खाल नोंच लेंगे।” विकास घबरा कर बोला।

“तब तुम्हीं बता दो...बन्दा वहीं हाजिर हो जायेगा।"

"ऐसा है...तुम कालेज़ के बाहर खड़े रहना। मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा।"

"क्या कोई लड़की-वड़की का चक्कर है क्या...गुरू।" जग्गा ने हंसते हुए पूछा।

“हाँ भई है तो कुछ ऐसा ही...साली हाथ ही नहीं आती।"

विकास ने लम्दी सांस लेकर कहा।

"गुरू हुक्म करो...उसका पता ठिकाना बताओ...अभी।...हाजिर कर दें तुम्हारे सामने।"

"तुम पर विश्वास हैं तभी तो इस समय तुम्हें फोन कर रहा हूँ।” विकासे ने मक्खन बाजी की।

“गुरू और कोई सेवा।"

“बस और कुछ नहीं..अब कल मिलेंगे...ओ०के०।"।।

"ओ० के०।"

विकास ने कनेक्शन काट दिया और अब उसके चेहरे पर प्रसन्नता नजर आ रही थी। विकास ने एक सिगरेट सुलगाई और धीरे-धीरे कश लेने लगा।

विकास के जहन में अब जग्गा का चेहरा धूम रहा था। जग्गा शहर का मशहूर गुण्डा था। शहर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो जग्गा के नाम व काम से वाकिफ न हो। दुनिया भर की बेरहमी :। जग्गा के अन्दर भरी हुई थी। उसे सिर्फ एक चीज से प्यार था... वो चीज थी पैसा! पैसे के लिये वह बड़े से बड़ा पाप करने के लिये तैयार हो जाता था।

दुनिया को कोई बुरा काम ऐसा नहीं था, जो वह न हो। चोरी, स्मगलिंग, लूट और यहाँ तक की पैसे के लिये वह लड़कियों को भी बेच डालता था। पर उसमें एक खास बात थी आज तक उसने जिस काम में हाथ डाला...उसमें हमेशा ही सफल हुआ था। आज तक उससे असफलता काव्मुंह नहीं देखा था।

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