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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

लता ने जूस का एक घूट भरा। उसे लगा जैसे आज जूस का टेस्ट ठीक नहीं है लता ने विकास की ओर देखा विकास उसी की तरफ देख रहा था।

"आज जूस ठीक नहीं है। लता ने विकास से कहा।

"क्यों क्या अन्तर है?” विकास के चेहरे पर एक अनोखी मुस्कुराहट थी।

"पता नहीं...पर रोज जैसा नहीं है।” लता ने कहा। वह एक ही प्रकार का जूस पीती थी।

"हो सकता है...तुम्हारी पसंद का जूस खत्म हो गया हो...इसलिय बैरा दूसरा ले आया होगा...तुम को मैं अभी वैरे को बुलाता हूं।” कहते हुये बैरे को आवाज देने का उपक्रम किया।

"अरे छोड़ो आज इसी को पी लेंगी।" लता ने कहा।

फिर सता ने जूस पीना शुरू कर दिया। विकास ने भी अपना गिलास खाली कर दिया। जूस पीने के बाद लता को अपना सिर थारी लगने लगी तभी विकास ने कहा-"लता चलो आज नाचा जाये।”

"नहीं विकास...पता नहीं मुझे क्या हो रहा है...कुछ नींद सी आ रही है।”

"लगता है आज फिर तुम्हारी तबीयत खराब हो रही है...चलो तुम्हें कमरे में लेटा हूं।” विकास ने लता के कंधे को पकड़ते हुये कहा।

''विकास ने क्लब में एक कमरा अपने नाम से बुक कर रखा था जिसमें वह एय्याशी करता था। विकास ने बैरे को आवाज लगाई पर तभी वहाँ रूबी आ गई।

"अरे विकास...लता को क्या हो गया।” रूबी ने लता की, ओर देखते हुये पूछा।

"कुछ तबीयत खराब हो गई है। विकास ने कहा।

“हो गई है...या कर दी गई।" रूबी के स्वर में व्यंग था।

"क्या मतलब।” विकास ने पूछा।

"अरे यार...हमसे मत उड़ो...हम सब जानते हैं...सौ का नोट इतना तो कर ही सकता है...चलो छोड़ो...अब इसे तुम्हारे कमरे में मैं पहुंचवा देती हूं।" रूबी ने लता को उठाते हुये कहा। लता बेहोश हो चुकी थी।

विकास जान गया रूबी उससे भी आगे है। वह रूबी के साथ ही चलता रहा। रूबी ने लता को विकास के कमरे में पहुंचा दिया।

स्त्री के जाने के बाद विकास ने अपना कंमरा बन्द कर लिया। उसने लाईट बन्द करके टेबल लैम्प जला दिया। अब विकास लता के पास आकर बैठ गया। लता बेहोशी की हालत में पलंग पर लेटी थी। उसका शरीर सौन्दर्य से दमक रहा था। काफी देर तक विकास यूं ही लता को निहारता रहा फिर धीरे-धीरे वह अपने होशो-हवाश खोता चला गया। बेहोशी की हालत में ही विकास ने लता को अपनी बांहों में जकड़ लिया। उसकी जकड़ सख्त होती चली गई। उसके होठ लता के होठ से चिपक गये।

जो विकास होश में लता से कभी न पा सकी। लता की बेहोशी की हालत में उसने वह सब पा लिया। अब लता उसकी थी। वह मनमाने ढंग से उससे काम ले सकता था। विकास के

होठों पर एक मोहक मुस्कुराहट दौड़ गई। लता अभी भी वैसे ही लेटी थी।

विकास पास की आराम कुर्सी पर बैठ सिगरेट केकश ले रहा था। साथ ही लता के चेहरे पर भी नजरें गड़ाये था। वह सोच रहा था जब लती की वेहोशी छूटेगी तब वह उसे कैसे सम्भालेगा।

उसने एक सुन्दर सा प्लान अपने दिमाग में बना लिया था। विकास ने देखा लतो होश में आ रही थी। वह कुर्सी से उठकर पलंग पर लता के पास बैठ गया। लता ने आंखें खोल दीं। और उसके मुंह से निकला-"मैं कहाँ हूं?"

"तुम मेरे पास हो लता।" विकास ने उसके हाथ अपने हाथ में ले लिये और उसके माथे पर एक चुम्बन दे डाला।

"विकास मुझे क्या हो गया था?” लता ने लेटे-लेटे ही पूछा।

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