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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“कुछ नहीं तुम बेहोश हो गई थीं।” विकास ने लता को समझाया।

अब लता उठकर बैठ गई। उसे लगा जैसे कोई तूफान उसके ऊपर से गुजर गया हो फिर वह सब कुछ समझ गई। लता फूट-फूटकर रो पड़ी-"विकास, ये तुमने क्या कर डाला...तुमने मुझे लूट लिया विकास...तुम कमीने हो...विकास मैंने तुम्हारे ऊपर विश्वास किया परन्तु तुमने ही मुझे धोखा दे दिया।" लता चीख उठी और उसने विकास को झकझोर कर रख दिया परन्तु विकास बुत के समान लता के सामने बैठा था।

लता चीख, चिल्लाकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसकी सिसकियों से सारा कमरा गूंज उठा।

विकास ने धीरे से लता की कमर पर हाथ फेरा फिर बोला-"लता प्लीज ऐसे मत रोओ...तुम्हारे सौन्दर्य के सामने मैं अपने को रोक न सका...नशे की हालत में में एक पाप कर गया...मैं

उसकी सजा पाने को तैयार हूं...परन्तु भगवान के लिये चुप हो जाओ।"

“विकास, सब कुछ लूटकरे कहते हो चुप हो जाओ...मैंने तो मन से तुम्हें अपना मान लिया था...आज नहीं तो कल ये शरीर तुम्हारा ही था फिर तुमने ऐसा क्यों किया...बताओ विकास तुमने ऐसा क्यों किया?" लता पागलों की तरह चिल्ला उठी।

"लता, मैं अपनी गलती मानता हूं...मैं भावनाओं में बह गया। था...परन्तु अब बताओ तुम क्या चाहती हो?" विकास के चेहरे। पर ऐसे कोई चिन्ह नहीं था जिससे लगे कि उसे पश्चाताप हो रहा...

“विकास अब एक ही रास्ता है और वह है शादी।" लता ने अपना निर्णय सुना दिया।

"क्या...शादी !” विकास चौंक उठा परन्तु तुरन्त ही उसने • अपने भावों को छिपा लिया।

"हाँ विकास, तुम मुझसे शादी कर लो।” लता ने सिसकते हुये कहा।

"ठीक है लता...चलो मैं शादी करने को तैयार हूं।” विकास ने लता को उठाते हुये कहा।

"ठीक है, मैं अभी आती हूं।" कहकर लता बाथरूम की तरफ बढ़ गई।

विकास अपने ख्यालों में खो गया।

कुछ देर बाद लता बाथरूम से निकल आई। अव उसकी दिल कुछ हल्का था। दोनों जाकर गाड़ी में बैठ गये। विकास ने। गाड़ी दौंडा दी। लता अब खुश थी। वह सोच रही थी आज वह विकास की दुल्हन बन जायेगी। अब विकास को कोई उससे नहीं छीन पायेगा। इतनी बड़ी हवेली, फैक्ट्री सबकी मालिक होगी। आ के बाद वह नौकरी भी नहीं करेगी। जिसके बचपन से जवानी तक एक पैसा भी अपनी मर्जी से खर्च नहीं किया वही. असे हजारों रुपये अपनी मर्जी से खर्च कर सकेगी।

तभी एक झटके से गाड़ी रुक गई। लता ने देखा गाड़ी एक मन्दिर के सामने की थी। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।

लता ने विकास से पूछा-"यहाँ क्यों लाये हो?"

"तुमने ही तो कहा था कि तुप शादी करना चाहती हो।” विकास ने भोलेपन से कहा।

“लेकिन मन्दिर में शादी। लता की समझ में कुछ भी नहीं आया।

"देखो लता...मैं इन बातों में कोई विश्वास नहीं रखता कि हजारों आदमियों के बीच शादी. हो...शादी तो दो दिलों की होती है...जब तुम मुझे चाहती हो मैं तुम्हें चाहता हूँ फिर इस दिखावे की। कोई जरूरत नहीं है परन्तु तुम ऐसा चाहती हो तो ईश्वर से बढ़कर कोई गवाह नहीं है इसीलिये मैं तुम्हें भगवान की मन्दिर में लाया हूँ।

"परन्तु अगर इस शादी को तुम्हारे डैड़ी ने कबूल नहीं किया तब।” लता ने परेशानी भरे स्वर में कहा।

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