सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
थोड़ी देर बाद सेठ जी ने रामू से कहकर विकास को अपने कमरे में बुलवाया। जब क्किास ने सुना कि डैडी बुला रहे हैं तो क्ह कुछ भी समझ नहीं पाया। लता के रूप सौन्दर्य के सामने विकास उस फोटो के विषय में भूल चुका था। डैडी का बुलावी सुनकर हमेशा ही विकास अन्दर से कांप उठता था क्योंकि वह जानता था कि डैडी के बुलाने का मतलब है या तो किसी ने कुछ शिकायत की है या फिर डी ने ही कोई हरकत देख ली है। फिर भी विकास ने रामू से कहा-"चलो काका मैं अभी आता हूं।"
इस समय विकास नाइट सूट पहन कर बिस्तर पर लेटा था उसने गाऊन पहना पैरों में चप्पल ली और डैडी के कमरे की ओर चल दिया।
"डैडी आपने मुझे बुलाया।” विकास ने सेठ जी के कमरे में पहुंचकर कहा।
“हाँ...कैसी रही पिकनिक।" सेठ जी ने बात चलाई।
"अच्छा प्रोग्राम रहा।”
"अब क्या प्रोग्राम है।"
"जी क्या मतलब?”
"हमारा मतलब है...अब कुछ दिन तो तुम्हारा कहीं जाने का प्रोग्राम नहीं है।"
“जी नहीं।"
“तब ठीक है मैं सेठ शान्ती प्रसाद से बात कर लेता हूं...तुम, लड़की देखकर अपनी हाँ-ना को जवाब दोगे अब मैं अधिक दिन तक इंता नहीं कर सकता।” सेठ जी ने कहा।
"पर हैडी मैं कुछ कहना चाहता हूं।” विकास ने साहस करके कहा।
"कहो क्या कहना चाहते हो।”
"डैडी वो लता हैं ना..।" विकास इतना ही कह पाया था
कि सेठ जी चीख उठे।
"विकास...मैं ऐसी लड़की से कभी तुम्हारी शादी नहीं कर सकता...मैने सुना है...तुम आजकल अधिकतर उसके साथ रहते हो...आज के बाद अगर मैंने कुछ सुना...तो मैं अपनी सारी जायदाद अनाथालय को दान दे दूंगा। तुम्हे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी।"
“डैडी मैं तो कुछ और कह रहा था।” विकास ने तुरन्त वात बदल दी।
“कहो क्या कह रहे थे?" सेठ जी का स्वर तेज ही था।
"ईडी लता को अभी तक हमने पंरमानेंट नहीं किया है...उसका कहना है कि उसे परमानेंट कर दिया जाये।”
"कब कहा था उसने ऐसा।”
"मेरे आगरा जाने से पहले।"
"उसे हमसे कहना चाहिये था।"
"वो आपके गुस्से से डरती है कि कहीं आप उसे नौकरी से हटा ही न दें।"
“ठीक है कल देखेंगे...अब तुम जाओ।"
विकास अपने कमरे में आ गया। विकास जानता था डैडी कभी भी लता को अपने घर की बहू नहीं बनायेंगे...इस विषय पर तो विकास ने भी नहीं सोचा था। वह तो अन्य लड़कियो की तरह ही लता को भी ऐश का साधन समझता था। पर लता उसे अपना पति ही मानने लगी थी। अब विकास लता से छुटकारा पाना चाहता था उसकी नजरें आजकल रूबी के ऊपर लगी थीं पर रूबी जल्दी से हाथ आने वाली चिड़िया नहीं थी।
सेठ शान्ती प्रसाद आज बहुत खुश थे। उन्होंने अपनी कोठी की विशेष प्रकार से सफाई करवाई थी...उनकी लाडली बेटी ने शादी के लिये हाँ कर दी थी आज देहली से सेठ दयानाथ व उनका पुत्र उनकी बेटी सुनीता को देखने आने वाले थे। सेठ जी सब नौकरों को आर्डर पर आर्डर दे रहे थे।
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