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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

सेठजी फालतू में कभी किसी पर नाराज नहीं होते थे। सेठजी सदा ही कर्मचारियों से कहते-“भाईयों, ये फैक्ट्री मेरी नहीं आप लोगों की है...जितना मन लगाकर आप लोग काम करेंगे उतना ही लाभ होगा। जितना लाभ होगा उसमें आप हम बराबर के हिस्सेदार होंगे।"

यह सच भी था साल में जितना फायदा होता उसी हिसाब से सबको बोनस दिया जाता था। यही सब कारण थे जिनकी वजह से फैक्ट्री के लोग छुट्टी कम ही लेते थे और सेठजी का कारोबार दिन दूनी रात चौगुना फैलता जा रहा था।

"बेटा, आज मेरी बेटी को एक भाई तथा मुझे एक बेटा मिला है...इस खुशी में फैक्ट्री के लोगों को भी तो कुछ मिलना चाहिये।" सेठ जी ने भरे गले से कहा।

"अच्छा अंकल मैं फोन करता हूं।" कहते हुये मुकेश अपने कमरे में चल दिया।

सेठजी ने आफिस के काम की वजह से मुकेश के कपरे में भी एक फोन लगवा दिया था।

सुनीता अपने कमरे में चली गई। सेठजी भी उठकर खड़े हो गये और धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चल दिये।

अपने कमरे में जाकर मुकेश ने आफिस फोन किया फिर अपने पलंग पर लेट गया और अपने हाथ में बंधी राखी को देखने लगा। वास्तव में आज का दिन उसके जीवन का सबसे सुन्दर दिन था जिसे वह कभी नहीं भूल सकता था। इतनी खुशी तो उसे उस दिन भी नहीं हुई थी जिस दिन उसे लता मिली थी। लता को पाने की तो उसने ईश्वर से कभी इच्छा भी नहीं की थी परन्तु अचानक ही लता को भगवान ने उसके सामने ला खड़ा किया था जैसे।

अनजाने में लता मिली थी वैसे ही अचानक भगवान ने उसे ले लिया था जैसे राह चलते अनेक राही मिल जाते हैं और फिर एक-एक करके राह में ही चले जाते हैं और अकेला राही अपनी मंजिल पर पहुंचता है।

मुकेश को मन कांप उठा और उसने अपर मुंह करके कहा-"भगवान तूने मेरी लता को छीन लिया...परन्तु अब सुनीता की प्यारे मुझसे कभी मत छीनना, प्रभु इस प्यार की कामना तो मैंने बचपन से की है...बरसों बाद आज पहली बार बहन का प्यार मिला है...इसे संदा कायम रखना प्रभु मैंने कभी तुझसे कुछ नहीं मांगा आज मांग रहा हूं...और इसे निभाने की शक्ति भी प्रदान करना।” मुकेश उठकर खिड़की में जा खड़ा हुआ।

विकास टैक्सी करके घर पहुंचा तो उसके ही घर में ही मौजूद थे। विकास ने पापा के पैर छुये और अपने कमरे की ओर बढ़ गया। सेठजी विकास को जाते देखते रहे। आजकल सेठ जी को विकास के रंग ढंग कुछ सही नजर नहीं आ रहे थे। उन्हें अपने विशेष लोगों से पता चला था कि विकास का अधिक समय आजकल अपनी नई सेकेटी लता के साथ कटता हैं। शुरू में तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया था परन्तु अब कुछ दिनों से काफी परेशान थे।

सेठ जी अपने सडले के विषय में अच्छी तरह जानते थे कि वह लड़कियों में बहुत दिलचस्पी रखता है जहाँ कोई अच्छी लड़की, देखी कि फिसल गये फिर लती तो काफी सुन्दर लड़की है। शुरू में लता साधारण वेशभूषा में ही आती थी पर आजकल वह काफी बनावं श्रृंगार करके आने लगी थी...सेठ जी को यह बिल्कुल पसन्द नहीं था पर वह इस विषय में लता से कुछ कह भी नहीं सकते थे।

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