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राजहंस का नवीन उपन्यास
"मैंने तुम्हें अच्छी तरह परखकर ही यह उत्तरदायित्व सौंपा हैं।
अब इसे निभाना तुम्हारा काम है भैया।"
तभी मुकेश व सुनीता ने हिचकी की आवाज सुनी दोनों चौंक उठे उन्होंने देखा सेठ जी की आंखों से आंसू टपक रहे थे।
"पापा ये तो खुशी का मौका है...ऐसे समय में आप रो रहे। हैं।” सुनीता पापा के पछे खड़ी हो गई।
"बेटी, ये आंसू खुशी के हैं...जब मनुष्य को वो प्यारी चीज मिल जाती है जिसकी सपने में भी उम्मीद न हो तो ऐसे अक्सर पर भी कभी-कभी आंसू निकल आते हैं...आज मैं बहुत खुश हैं। बेटी जो मैं कभी नहीं दे पाया उसे तुमने खुद वे खुद ढूंढ लिया।
आज तुम्हारी परख की दाद देनी होगी।" सेठजी ने आंसू पोंछते हुये कहा।
“सुनीता, अंकल झूठ बोल रहे हैं... मुझे तो कुछ और नजर आता है।" मुकेश ने इस बोझिल वातावरण को मिटाने के लिये कहा।
"क्या?" सेठजी व सुनीता दोनों के मुंह से ही एक साथ निकला।
“बतऊ।"
"बताऊं।"
“बोलो न।” सुनीता ने कहा।
"अरे तुमने मुझे मिठाई खिला दी और मैंने तुम्हें परन्तु अंकल को किसी ने पूछा ही नहीं...इसीलिये अंकल रो पड़े...कहते हैं ना बुढ़ापे में आदमी को दिल बच्चों जैसा हो जाता है।” मुकेश ने बड़ी अदा से कही।
मुकेश की बात सुनकर सेठजी, खिलखिलाकर हंस पड़े जिससे मुकेश व सुनीता ने भी पूरा साथ दिया।
कुछ देर पहले का बोझिल वातावरण खुशनुमा हो गया था। मुकेश बड़ी गौर से राखी को देख रहा था। राखी का डिजाइन बहुत सुन्दर था। तभी मुकेश की नजर मेज पर पड़ी जहाँ रखी चाय ठण्डी हो रही थी। सेठजी, मुकेश वे सुनीता तीनों अपने-अपने ख्यालों में खोये हुये थे।
“वाह भई चाय पीने को तो मना कर दिया था परन्तु अब ये नहीं हो रहा कि गरम-गरम अपने हाथ की चाय पिला दे।" मुकेश ने ख्यालों में खोई सुनीता से कहा।
“ओह मैं तो भूल गई थी।” कहते हुयें सुनीता उठकर अन्दर ‘चल दी। कुछ ही देर बाद दीनू मेज पर रखे कप उठाकर चला गया।
सुनीता ने रसोई में जाकर चाय बनाई। जब तक चाय बनी दीनु नाश्ता मेज पर लंगा गया था। ट्रे में तीन कप वे चाय लेकर सुनीता आई। उसने तीनों कपों में चाय डाली, पहली कप सेठजी को पकड़ाया दूसरा मुकेश को तथा तीसरा कप खुद लेकर चुस्की लेने लगी।
चाय नाश्ते के बाद सेठजी ने मुकेश से कहा-“मुकेश आज अफिस में फोन कर दो कि नोटिस बोर्ड पर छुट्टी का नोटिस लगा दे।"
"परन्तु क्यों अंकल?” मुकेश की समझ में नहीं आया आज अचानक छुट्टी का विचार सेठजी को कैसे बन गया। सेठजी की फैक्ट्री में इतवार के अलावा कोई छुट्टी नहीं दी जाती थी। सेठ जी नौकरी पर रखते समय ही यह बात साफ कर देते थे परन्तु वैसे उनकी फैक्ट्री के व्यक्तियों को अनेकों सुविधायें मिलती थीं जो अन्य फैक्ट्रियों में नहीं दी जाती थी। सेठजी फैक्ट्री के चपरासी से लेकर मैनेजर तक हर व्यक्ति के दुख तकलीफ का ध्यान रखते थे इसीलिये हर व्यक्ति सेठजी को देवता के रूप में देखता था। एक बार जो इस फैक्ट्री में काम कर लेता और कहीं आने का नाम नहीं लेता था।
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