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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

मुकेश को देखते ही विकास के मन में कहीं कुछ सन्देह फैल गया था। पर सेठ जी की बात सुनते ही विकास संयत हो। गया...वैसे भी विकास जानता था कि मुकेश कितना चरित्रवान है...कालेज के समय में लता के अलावा कभी किसी की तरफ आंख भी नहीं उठाता था...इसलिये विकास को सेठ जी की बातों में सच्चाई नजर आई...और फिर सेठ जी ने खुद ही अभी कहा कि यदि मुकेश चाहता तो सेठजी सुनीता से उसकी शादी कर देते।

“अंकल नाश्ता तैयार है।” मुकेश ने सेठ जी से कहा।

"चलिये सेठ जी।" शान्ती प्रसाद ने विकास के डैडी से कहा।

सब मिलकर नाश्ता करने चल दिये।

नाश्ते के बाद विकास के डैड ने विकास से पूछा-"तुझे लड़की पसन्द है?"

"जी हाँ डैडी।" विकास ने कहा।

"तब मैं अभी रिश्ता पक्का करता हूँ अगर मान गई है। शादी भी एक दो दिन में ही कर देंगे क्योंकि मुझे डर है...ये लड़की मुकेश कहीं सब गुड़-गोबर न कर डाले।"

"डैडी मैं आपका मतलब नहीं समझा।” विकास ने कहा।

“तुम कभी समझ भी नहीं सकते...ये लड़का तुम्हारा कालेज का दोस्त है।”

"जी डैडी।"

“यह तुम्हारे चरित्र के बारे में भी सब जानता होगी फिर यदि उसने सुनीता को बहन बनाया है...तो वह कभी यह नहीं चाहेगा कि...उसकी बहन किसी आवारा के साथ ब्याही जाये।" सेठ जी। को स्वर कठोर था।

"डेडी आप जैसा ठीक समझे वैसा करें।" विकास अब अपने डैडी की बात समझ गया था।

सेठ शान्ती प्रसाद ने सुनीता के कमरे में जाकर सुनीता से पछा-"बेटी तम बताओ-तम्हें अगर विकास पसन्द हो तो मैं मंगनी की रस्म अदा कर दें।" फिर मीना से कहा-“मीना बेटी उधर से मुकेश को तो बुला...मुझे तो पता ही नहीं था...कि विकास मुकेश का दोस्त है।"

मीना मुकेश को बुलाने चली गई।

"बेटी बता तुझे पसन्द है विकास?"

"पापों अगर आपको पसन्द है...तो मुझे कोई एतराज नहीं है।” सुनीता ने धीरे से कहा। इस समय उसकी गरदन झुकी हुई थी।

तभी मीना के साथ मुकेश ने कमरे में कदम रखा।"

"अंकल आपने मुझे बुलाया।” मुकेश ने कहा।

"बेटा तुम विकास के साथ पढ़े हो...तो विकास के बारे में बहुत कुछ जानते होंगे।”

“अंकल मैं जो जानता हूं...सुनीता को बता चुका हूं।”

“तब ठीक है...सुनीता शादी के लिये तैयार है।" सेठ जी ने कहा और चल पड़े।

मुकेश सुनीता का मुंह देखता रह गया फिर उसने सुनीता को झकझोर डाला-"सुनीता बहन तूने सब कुछ जानकर भी क्यों शादी के लिये हाँ कर दी बता सुनीता तूने ये क्या किया।

"मुकेश भैया इसीलिये तो मैंने हाँ कर दी कि हो सका तो मैं उसे रास्ते पर ले आऊंगी और अगर न ला सकी...तो समझूँगी। मेरी किस्मत में ईश्वर ने सुख लिखा ही नहीं था।”

"पर सुनीता मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।” मुकेश ने दृढ़ स्वर में कहा।

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