सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
"भैया आपको मेरी कसम आप डैडी से कुछ नहीं कहेंगे...अगर मुझे सुख न भी मिला..,पर में और लड़कियों की जिन्दगी बरबाद नहीं होने देंगी...विकास अपने पैसे के बल पर ही लड़कियों को आकर्षित करता होगा...फिर मेरा एक ऐसा भाई भी है...जो हर कदम पर मेरे साथ होगा।"
"पर सुनीता...।"
"पर-वर कुछ नहीं...तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी।” सुनीता ने बीच में ही मुकेश की बात काट दी।
"मिस्ट्रर मुकेश...जब इसका मन आग में कूदने का है...तो आप क्यों परेशान होते हैं...फिर लड़कियों में इतनी तो हिम्मत होनी ही चाहिये...कि वह अपने पति हो सही रास्ते पर ला सके...इस बहाने सुनीता की परख हो जायेगी...और अगर पानी सिर से उतर गया तो तलाक तो ले ही सकती है।” मीना ने अपनी निर्णय दे डाला।
"अगर आप दोनों ही यह चाहती हैं...तो मैं क्या कर सकता हूं।” इतना कहकर मुकेश कमरे से निकल गया।
सेठ दयानाथ ने यही तय किया कि वह शादी करके ही बहू साथ ले जायेंगे। साथ ही उन्हें वहाँ से काफी धन-सम्पत्ति मिलने की आशा थी। वैसे दयानाथ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी पर ये मनुष्य की इच्छा कभी नहीं भरती। ये मनुष्य का स्वभाव है। उसके पास जितना बढ़ता है उतनी ही इच्छायें और बढ़ती जाती हैं। सेठ दयानाथ के पास काफी पैसा था। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर फिर भी उन्होंने अपने इकलौते बेटे के लिये अमीर घर ढूंढा, था जिससे उनके बैंक बैलेंस और बढ़ोत्तरी हो जाये।
सेठ दयानाथ ने सेठ शान्ती प्रसाद को कमरे में आते देखा तो वह सम्मलकर बैठ गये। सेठ जी कमरे में आये और सोफे पर बैठ गये। फिर विकास से बोले-"बेटा अब तुम अपनी मर्जी बता दो तो कुछ थोड़ी सी रस्म कर दी जाये।”
"अजी देवी जैसी लड़की के लिये भला ये क्या मना करेगा...सेठ जी हम तो बिल्कुल तैयार हैं...बल्कि यह चाहते हैं कि आप अगर साथ ही शादी भी कर दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।" विकास के डैडी ने कहा।
"क्या इतनी जल्दी शादी।” सेठ शान्ती प्रसाद चौंक उठे।
"क्यों क्या आपको कोई परेशानी है।"
“देखिये समधी साहब इतनी जल्दी तो मैं किसी हालत में शादी नहीं कर सकता...एक बात और कहना चाहता हूं...कि मैं दहेज के सख्त खिलाफ हूं...वैसे सुनीता मेरी इकलौती बेटी है..सब कुछ उसका ही है...पर मेरे मरने के बाद और वो भी यदि मैं अपनी 'मौत मलंगा ब...नहीं तो मेरी सारी जायदाद अनाथालय के नाम होगी।” सेठ जी सांस लेने के लिये रुके साथ ही वह विकास व सेठ दयानाथ के चेहरे के भाव भी पढ़ना चाहते थे ऐसा करने का मतलब था कि वह चाहते थे कि उनकी बेटी किसी पैसे के लोभी
के हाथों में न पड़े। फिर सेठ जी ने कहना शुरू किया-"शादी में बड़ी धूमधाम से करना चाहता हूं...मेरी एक बेटी है अपने सब अरमान इसी की शादी में निकालने हैं...पर दहेज के नाम पर मैं अपनी लड़की के जरूरत का सामान ही दूंगा...मैं जानता हूं...आपके मकान में वो सब सज्जा सामान है ही जो एक गृहस्थी में चाहिये...उसके बदले में कैश रुपया दूंगा...जो सुनीता के नाम से बैंक में जमा रहेगा...जिससे मेरी बेटी को कोई परेशानी न हो।” इतना कहकर सेठ जी चुप हो गये।
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