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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

सेठ शान्ती प्रसाद की कोठी आज़ पूरी तरह सजी हुई थी। सजावट में उन्होंने हजारों रुपये लगा दिये थे। कोठी का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहाँ बल्ब न चमक रहे हों। सारी कोठी दुल्हन की तरह सजी थी। नन्हे-नन्हे रंग बिरंगे बस्यों के बीच-बीच में ट्यूब लाइट लगी थीं। सेठजी को एक जगह चैन नहीं था। वह बार-बार कभी कहीं जाते की कहीं।

मुकेश भी सेठजी के साथ-साथ काम में जुटा था। सेठजी. ने अनेक काम मुकेश के सुपुर्द कर दिये थे। मुकेश यहाँ वहाँ सब जगह देख रहा था परन्तु उसका मन खुश नहीं था। अन्दर ही अन्दर वह परेशान था। उसे लग रहा था जैसे वह जान बूझकर शेर की

मांद में भेज रहा हो परन्तु वह कुछ भी नहीं कर सकता था। जब सुनीता खुद ही मौत के मुंह में जाना चाहती है तो वह क्या कर सकता है।

घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया था। सुनीता की सहेलियां सनीता को घेरे बैठी थीं। सब आपस में मजाक कर रही थीं तथा सुनीता को भी छेड़ती जा रही थीं। सुनीता नजरें झुकाये बैठी थी और मीना उसे तो फुरसत ही नहीं थी। सुनीता की सबसे प्यारी सहेली मीना थी। फिर कोठी की हर वस्तु का उसे ज्ञान था। इसलिये कई कामों की जिम्मेदारी उस पर पड़ गई थी।

दोपहर के एक बजे का समय था। मीना ने खाना लगवाया फिर कमरे में आकर सबको खाना खाने के लिये कहने लगी। सब लोग खाना खाने चल दिये। खाने के लिये सेठजी ने एक बड़े कमरे में इंतजाम कर दिया था जहाँ सौ आदमी आराम से खाना खा सकें।

सबको भेजकर मीना सुनीता के पास गई और बोली-“अब, तो यारे बड़ी थक गई हूं...कुछ देर सुस्ता लूं।”

“तुझे किसने मना किया है।"

“तूने।"

"क्या मैंने कब मना किया है?"

"तूने ही तो शादी का चक्कर फैलाया है।"

"तेरी शादी में सब बराबर कर दूंगी।"

"अरे शादी के बाद तो सब मेहमान बन जाते हैं...फिर जीजा जी तुझे छोड़ेंगे तब ना।”

"क्यों नहीं छोड़ेंगे?"

"तेरे बिना उनका मन लगेगा।"

“मीना, उसके लिये अकेली मैं ही नहीं हूं...अनेक लड़कियां

होंगी...जैसा मुकेश भैया ने बताया है।” सुनीता का चेहरा एकाएक उदास हो गया।

"देखना शादी के बाद सिर्फ तू ही तू होगी...मला घर में जब इतनी सुन्दर बीबी हो तो बाहर क्यों जायेगा।"

"देखा जायेगा...आगे-आगे क्या होता है?"

"सुनीता तूने खुद ही तो ओखली में सिर डाला है...अब अगर अभी से हिम्मत हार जायेगी तो आगे क्या होगा।”

“मीना तू चिन्ता मत कर...जो होगा सही होगा।” मीना ने कहा तभी उसने देखा व लड़कियां खाना खाकर वापिस आ रहीं। थीं तो मीना बोली-“सुनीता मैं मुकेश को देखती हूं कहाँ है, उसने सुबह से कुछ नहीं खाया है फिर हम तीनों खाना खा लेंगे।"

सुनीता तैयार हुई थी कि मुकेश ने दरवाजे पर दस्तक दी।

"कौन।” मीना ने पूछा।

"मैं मुकेश।”

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