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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

विकास ने अपने कुछ दोस्तों को ही बुलाया था। क्लब के किसी लड़के को भी उसने निमंत्रण नहीं दिया था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि लता के कानों में अभी उसकी शादी की बात-पड़े।

लोगों के आने-जाने में रात के ग्यारह बज गये थे। विकास अभी भी दोस्तों में घिरा था। सुनीता को घर की कुछ औरतों ने ले जाकर विकास के कमरे में पहुंचा दिया था ! सुनीता ने चुपके से एक नजर कमरे में चारों ओर डाली। कमरा काफी बड़ा था। सुख सुविधा का सब सामान कमरे में मौजूद था।

जिस पलंग पर सुनीता बैठी थी उसे भी विशेष प्रकार से सजाया गया था। उसके चारों ओर फूल ही फूल बिछे हुये थे। उन फूलों की महक सुनीता को मदहोश कर रही थी। इधर-उधर

कई लड़कियां बैठी थी जो सुनीता को छेड़ रही थीं पर सुनीता घूंघट निकाले...चुपचाप बैठी थी।

तभी कमरे में किसी के आने की आहट हुई। साथ ही पास बैठी लड़कियां खिलखिला कर हंस पड़ीं और भाग लीं। उनके जाने के बाद विकास ने दरवाजे की चटकनी चढ़ाई और धीरे-धीरे सुनीता के करीब आने लगा।

सुनीता पलंग से उठने लगी लेकिन विकास ने पकड़कर पलंगे। पर ही बैठा दिया और उसके करीब ही बैठ गया। विकास के दिल में एक बात खटक रही थी कि मुकेश ने अवश्य ही सुनीता को। उसके विषय में सब कुछ बता दिया होगा।

"सुनीता डार्लिंग तुम बहुत सुन्दर हो...मैंने तो तुम्हें देखते ही पसन्द कर लिया था...पर तुमने भी मुझे पसन्द किया या नहीं।" विकास ने सुनीता के घूघट से खेलते हुये कहा।

"...।” सुनीता चुप रही।

"अच्छा याद आया...अभी मैंने मुंह दिखाई तो दी ही नहीं।" विकास ने कहा फिर जेब से एक सुन्दर सी डिबिया निकाली उस डिबिया में से एक सुन्दर जंजीर के अन्दर एक पैडल पड़ा था।

विकास को लगा जैसे बदली में से चांद झांक उठा हो। विकास ने सुनीता को अपने आगोश में भर लिया।

लता आफिस आई तो उसने दबी-दबी विकास की शादी की बातें सुनी पर वह विश्वास नहीं कर सकी। आज लता कई दिन बाद आफिस आई थी। आजकल उसकी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। अब विकास पर से भी दीवानगी का भूत हट गया थी। अब विकास रोज लता को क्लब नहीं ले जाता था न कहीं। और ही ले जाता था दूसरे तीसरे दिन कुछ समय के लिये लता के . पास आता था। थोड़ी देर बात करके, हाल-चाल पूछकर चला जाता था। लता उसके इस व्यवहार से पहले तो परेशान हुई पर अब उसने सोचा आखिर विकास का काम इतना फैला हुआ है। अगर सारे समय मेरे पास रहेगा तो काम कब करेगा।

लेकिन आज आफिस में जो बातें उनके कान में पड़ी उससे वह परेशान हो उठी। कुछ ही देर बाद विकास आफिस में आया और फाइलों में उलझ गया।

लता ने कई बार विकास से बात करनी चाही पर विकास ने जान-बूझकर लता को टाल दिया। इतना तो विकास भी जानता था कि एक ही आफिस में रहते हुये उसकी शादी की बात अधिक दिन तक छुपी नहीं रह सकती। लेकिन फिर भी वह चाहता था ज़ब तक ने खुले ठीक ही है। वैसे अब विकास खुद भी लता से पीछा छुड़ाना चाहता था क्योंकि आजकल वह अपनी पत्नी सुनीता में खोया था।

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