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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

विकास के हाथों में कई सुन्दर जिस्म आ चुके थे पर सुनीता एक ले उसकी पली थी, वह सुन्दर थी। दूसरे करोड़ों की जायदाद की अकेली वारिस थी। वह नहीं चाहता था कि उसकी छोटी सी भूल उसे करोड़ों की जायदाद से अलग कर दे।

इधर सुनीता ने रामू काका से आफिस का पूरा हाल मालूम

कर लिया था। उसने यह भी पता लगा लिया था कि विकास की. सैकेटी एक लड़की है जिसका नाम लता है और इसी नाम ने उसके दिमाग में हलचल मचाकर रख दी थी।

सुनीता एक बार लता से मिलना चाहती है कि ये मुकेश की प्रेमिका लता ही है या और कोई है...सुनीता ने लता की फोटो अच्छी तरह से देखी थी। उसे पूरा विश्वास था कि वह लता को देखते ही तुरन्त पहचान लेगी। पर मुश्किल यही थी कि वह लता तक कैसे पहुंचे।

आज सुनीता ने सोच लिया था कि वह आफिस जरूर जायेगी और लता को देखेगी...सो जब विकास घर नहीं पहुंचा तो उसने डैडी से अनुमति ली, कार निकाली और आफिस की तरफ चल दी।

आफिस में जिसने सुनीता को देखा सिर झुकाकर सलाम बजाय । सुनीता बिना इधर-उधर देखे विकास के कमरे के सामने - पहुंच गई । दरवाजा खोलकर सुनीता ने कहा-“मैं अन्दर आ सकती हूँ।"

"तुम सुनीता...तुम यहाँ क्यों आई हो।” विकास सुनीता को देखते ही हड़बड़ा गया पर सुनीता अब तक अन्दर पहुंच चुकी थी और एक कुर्सी पर बैठ भी गई थी। सुनीता ने अन्दर घुसते ही लता के केबिन पर नजर डाली थी और लता को देखते ही चौंक उठी थी क्योंकि वह मुकेश की लता ही थी। कुर्सी पर बैठने के बाद सुनीता ने कहा-“क्या मुझे आफिस नहीं आना चाहिये था।”

"मेरा मतलब था तुम्हारे आफिस आने पर कहीं डैडी नाराज न हों।” विकास ने कहते हुये चोर नजरों से लता की ओर देखा। लता बड़े गौर से सुनीता को देख रही थी।

"मैं डैडी से पूछ कर आई हूं!” सुनीता ने कहा तो विकास चुप रह गया।

"चलो फिर चला जाये।" विकास ने उठते हुये कहा। विकास नहीं चाहता था कि सुनीता लता के सामने ज्यादा देर रहे।

"चलिये।” सुनीता ने कहा और खड़ी हो गई। कुछ देर बाद दोनों बाजार की तरफ जा रहे थे। विकास एकदम चुप था पर सुनीता को चुप बैठे परेशानी हो रही थी फिर वह बोर हो उठी-“वो जो केबिन में थी...वो आपकी सेकेट्री है।"

"हाँ।"

"मैं उससे मेल करना चाहती हूं।"

"क्यों?"

"देखो ना...यहाँ अपनी कोई फ्रेन्ड नहीं है...आप क्लब वगैरहा भी नहीं ले जाते।”

"तो इससे क्या फर्क पड़ता है।"

“अगर आपकी सैकेट्री से दोस्ती हो जायेगी तो कम से कम शाम को समय तो कट हो जाया करेगा।"

"सुनीता मैं छोटे लोगों से मेल पसन्द नहीं करता।"

क्या छोटे लोग इंसान नहीं होते।”

"होते हैं पर मुझे पसन्द नहीं।"

"लेकिन मैं एक बात कहूं...छोटे लोग पैसे वालों से अधिक ईमानदार होते हैं।”

"तब मुझसे शादी क्यों की...किसी गरीब से कर लेती।"

"मेरी तो यही इच्छा थी और डैडी ने भी कह दिया था...पर कोई व्यक्ति मिला ही नहीं।"

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