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राजहंस का नवीन उपन्यास
लता ने फ्लैट का ताला खोला फिर विकास से कहा-“आइये।”
विकास कमरे में प्रवेश कर गया और सोफे पर बैठ गया। लता ने कमरे की चटकनी लगाई और फिर रसोई में चली गई। चाय का पानी चढ़ाकर लता ने ड्रेस चेंज की और विकास के पास आ गई।
"क्या पियोगे चाय या कुछ और?"
"सिर्फ चाय।”
"कमाल है।"
“किस बात का।”
“इस समय तो तुम एक पैग लेते थे।"
"आदत सुधार रहा हूं।”
“कोई विशेष कारण है।"
"क्यों नहीं पहले सिर्फ ऐश करता था...अब सारी फैक्ट्री का भार मुझ पर है।"
"और गृहस्थी का।”
"तुमने आफिस में कहा था कुछ जरूरी बातें करनी हैं..कहो।"
"पहले चाय-नाश्ता कर लें...फिर आराम से बात करेंगे।" लता ने कहा और रसोई में चल दी। लता ने चाय बनाई साथ में कुछ बिस्कुट व नमकीन ली और ट्रे लेकर विकास के सामने रखी मेज पर रख दी। फिर विकास के पास ही सोफे पर बैठ गई।
लता ने चाय दो कपों में डाली। एक कप विकास की ओर
बढ़ा दिया।
विकास ने चाय का कप उठाया और धीरे-धीरे पोने लगा।
चाय के साथ ही लता ने बात करने का फैसला किया और बोली-“विकास अब तुम अपने डैडी से बात कर लो।"
"किस विषय में विकास का स्वर ऐसा था जैसे कभी पहले लता से भेंट ही न हुई हो।
"अपनी शादी के विषय में।”
"डैडी इस शादी के लिये तैयार नहीं हैं।"
"क्या...तुमने बात की।"
"हाँ...मैं बहुत पहले बात कर चुका हूं।"
"फिर क्या होगा...मैं तो कही की भी नहीं रही।”
“मेरी बात मानो...इस विषय को भूल जाओ।”
“ये तुम कह रहे हो।"
"क्यों क्या मैंने गलत कहा है।"
"विकास तुमने मुझसे मन्दिर में शादी की थी और फिर अब मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं।"
“क्या सबूत है तुम्हारे पास...कि तुमने मुझसे शादी की है?"
"उस दिन तो तुमने मन्दिर में भगवान के सामने शादी की थी वह ढोंग था?"
"मैंने कोई शादी नहीं की..लता सिर्फ मैंने तुम्हारे साथ सहानुभूति दिखाई है...तुम्हें गरीब दुखी देखकर तुम्हें अपनी फैक्ट्री, में नौकरी दिलवाई...तुम्हारी मदद की, जिसका मुझे ये प्रसाद मिल रहा है कि पता नहीं किसका पाप तुम मेरे सिर थोपना चाह रही हो।” विकास का एक-एक शब्द लता के सीने पर छुरियां चला
रहा था।
"ओह विकास मैंने तो तुम्हें अपना देवता माना है...तुम्हारे अलावा दूसरा कोई मेरे जीवन में नहीं आया।"
"क्यों क्या मुकेश से प्यार नहीं करती थीं।”
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