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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"लेकिन रूबी तुम मेरी दुश्मन क्यों बन बैठी हो...मैंने तुम्हारे साथ कभी कुछ गलत नहीं किया।”

"अगर मैं तुमसे ये पूछे कि तुमने जिन लड़कियों को बरबाद किया...क्या उन्होंने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया था...तो तुम क्या कहोगे।” रूबी का स्वर व्यंगात्मक था।

“आज तुम अचानक उनकी हितैषी कैसे बन गई?”

“मैं भी एक लड़की हूं..उनकी परेशानी का जितना अनुमान

मैं लगा सकती हूं तुम नहीं।”

“पर इस सब में कभी तो तुम भी मेरी साझीदार रही हो।"

“यहीं पर तो तुम गलत हो।”

"क्यों?"

"मैंने हमेशा तुम्हें इस बात का अहसास दिलाया है कि तुम गलत जा रहे हो पर तुमने मेरी बातों को कभी गम्भीरता से नहीं लिया।"

“पर फिर तुमने मेरा साथ क्यों दिया।"

“इसलिये कि मुझे तुम्हारे विरुद्ध सबूत इकट्टे करने थे...तुम्हारे साथ रहे विना मैं ये नहीं कर सकती थी।"

"अब क्या चाहती हो?"

"पच्चीस हजार।”

"लेकिन एक साथ मैं इतनी रकम नहीं दे सकता।"

"इससे मुझे कुछ नहीं लेना।"

"पच्चीस हजार के बाद तुम मुझे निगेटिव दे दोगी।"

"क्या इतनी बेवकूफ समझ रखा है मुझे।"

"पच्चीस हजार के बाद भी निगेटिव नहीं दोगी।"

"नहीं सिर्फ इस बात के पच्चीस हजार मांग रही हैं कि ये फोटो तुम्हारी पत्नी व बैडी को कभी नहीं दिखाये जायेंगे।"

"मैं तुरन्त पैसा नहीं दे सकता।"

"एक सप्ताह का सश्य दे सकती हैं...इसलिये कि कभी तुम मेरे दोस्त रहे हो पर इस बात का ध्यान रखना आज के ही दिन चार बजे से पहले-पहल रुपया मेरे पास पहुंच जाना चाहिये।”

“ठीक है...अब मैं जा सकता हूं।"

"शौक से जाओ।”

विकास उठा और बिना रूबी की तरफ देखे ही तेज कदमों से रूबी के फ्लैट से बाहर हो गया।

दूसरे ही क्षण उसकी गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी। रूबी ने उसके दिमाग में हलचल मचाकर रख दी थी। विकास ने आज तक नारी को अबला ही माना था पर आज उसकी बुद्धि ने उसकी सोचो को ही तोड़ दिया था। आज उस औरत के तीन रूप विकास के सामने थे जिसे वह पैर में बसने वाली दासी समझता था और, सोचता था कि पुरूष क्ह कठोर चट्टान है तो नारी को कभी भी एक ठोकर मारकर दूर फेंक सकता है...पर आज विकास तीन नारियों के बीच फंसा था।

पहला रूप तो विकास के अनुसार ही था जो लता का रूप था...विकास ने एक ठोकर मारकर लता को दूर कर दिया था। आज वह अबला नारी का जीवन बिता रही थीं..दूसरा रूप गृहस्वामिनी का था जिस रूप में सुनीता ने विकास को काफी कुछ अपने अधिकार में ले लिया था और विकास की हर बुरी आदत लता के डर से ही छूट रही थी हालांकि आज तक सुनीता ने कोई गलत व्यवहार नहीं किया था। आपस की थोड़ी बहुत नोंकझोंक, तो परिवार के लिये जरूरी भी रहती है।

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