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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

और तीसरा रूप आज विकास ने रूबी को देखा था नागिन का रूप अक्सर कहा जाता है नारी जब नागिन का रूप धारण, करती है तो बड़े-बड़े राजाओं के सिंहासन हिल उठते हैं आज रूबी की चाल ने विकास को अन्दर तक हिलाकर रख दिया...विकास का दिमाग काम नहीं कर रहा था कि वह कहाँ से पच्चीस हजार का इंतजाम करे फिर विकासे जानता था जग्गा की तरह भी रूबी, का हाथ सदा फैला ही रहेगा। एक बार देकर ही बात साफ नहीं हो जानी है।

विकास को लग रहा था जैसे वो सब लड़कियां उसकी बेबसी पर हंस रही हैं जिन्हें उसने नरक का जीवन बिताने के लिये मजबूर किया और उन सबके आगे लता खड़ी है।

विकास ने गाड़ी एक पार्क में रोकी और अपना सिर दोनों हाथों में थामकर गाड़ी के अन्दर ही बैठा रह गया उसे ला रहा था जैसे उसके शरीर को किसी ने निचोड़कर रख दिया हो।

सुनीता ने रामू के द्वारा लता के घर का पता पा लिया था। सुनीता ने कल रूबी विकास की बातें सुनकर यह भी अन्दाज लगा लिया था कि विकास आजं रूबी के फ्लैट पर जायेगा।

सुनीता को लगा आज से बढ़िया कोई दिन नहीं मिलेगा लता के घर जाने का। सो वह छ: बजे के करीब तैयार हुई और गाड़ी में बैठकर लता के घर की तरफ चल दी। उसके हाथ स्टेयिरंग पर थे पर दिल में एक तूफान उठ रहा था। अपने अनुमान के अनुसार ही सुनीता ने ये कदम उठाया था पर अनुमान गल भी हो सकता था क्या दो लड़कियों की शक्ल व नाम एक से नहीं हो सकते पर फिर वह आफिस में काम करना भी सन्देह की पुष्टि कर रहा था।

सुनीता की गाड़ी लता के फ्लैट के पास जाकर रुक गई। लता ने अपने फ्लैट के बाहर गाड़ी की आवाज सुनी तो चौंक उठी। फिर उसने सोचा रूबी होगी उसके पास उसके अलावा कौन है आ सकता है। विकास के आने का तो कोई मतलब ही नहीं था और किसी से उसकी कोई जान पहचान नहीं थी।

सुनीता ने गाड़ी लॉक की फिर लता के फ्लैट की काबेल पर हाथ रख दिया। बैल की आवाज फ्लैट में गूंज उठी।

लता उठी और दरवाजे की चटकनी खोल दी। दरवाजा खोलते ही सती चौंक उठी। उसके सामने वही लड़की खड़ी थी जो उस दिन आफिस में विकास से मिलने आई थी। उसके माथे पर गोल बड़ी सी ब्दिी थी और मांग में सिन्दूर भरा था जिसका, मतलब था वह शादी-शुदा थी।

“क्या अन्दर नहीं आने दोगी।” लता को चुप दरवाजे पर खड़े देख सुनीता ने मुस्कुराकर कहा।

"ओह आइये।” लता को अपनी गलती का अहसास हुआ। वह दरवाजे से अलग हट गई।

सुनीता अन्दर जाकर सोफे पर बैठ गई। लता ने दरवाजा बंद किया फिर पलंग पर बैठ गई। लता की समझ में नहीं आ रहा था कि इस अनजान लड़की से क्या बात करे?

"मैने आपको पहचाना नहीं है।" लता ने धीरे से कहा।

"मेरा नाम सुनीता है...तुमने मुझे अपने आफिस में देखा होगा।”

"ओह हाँ...याद आया।”

“तुम्हारा नाम लेता है ना।"

“जी हाँ...पर आप मेरा नाम कैसे जानती हैं?"

"मैं तो तुम्हारे विषय में बहुत कुछ जानती हूं...पर वह सच है या नहीं यही पूछने आई हूँ।"

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