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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"कोई परेशानी हो तो बताओ।" मुकेश ने चलते हुये कहा।

"नहीं कुछ नहीं।"

और फिर मुकेश चला गया।

लता सोच रही थी वह अपने भाग्य पर रोये या मुस्कुराये।

रूबी जब लता के फ्लैट पर पहुंची तो वहाँ ताला लगा हुआ था। रूबी का दिमाग चकरा गया उसकी समझ में नहीं आया कि लता कहाँ गई होगी। जब से वह इस हाल में थी कभी भी बाहर नहीं निकली थी। आफिस से भी छुट्टी ले चुकी थी पर आज वह कहाँ गई।

रूबी को ध्यान आया कि अब सता का वो समय था जब किसी समय भी उसे डॉक्टर की जरूरत पड़ सकती थी। उसने मन में सोचा-"हो सकता है सता अस्पताल गई हो पर किस अस्पताल में गई ये कैसे पता लगाया जा सकता था। इतने बड़े शहर में अनेक अस्ताल थे।

रुबी ने अपना फोन नम्बर लता को दे रखा था पर लता ने रूबी को फोन नहीं किया था। अस्तर लता सुनीता के साथ हो गई होगी।"

विकास अपने बिस्तर पर लेटा था। सुनीता उसके लिये जूस बना रही थी। तभी उसने गाड़ी का हार्न सुना। सुनीता ने खिड़की से झांका वह रूबी की गाड़ी थी सुनीता के माथे पर बल पड़ गये।

"कौन आया है?” विकास ने पूछा।

"रूसी।"

"क्या?" विकास का सारा शरीर कांप उठा।

"तुम रूबी के नाम से चौंक क्यों उठे।"

"नहीं तो।”

“उस दिन भी रूबी के आने के बाद तुम परेशान हो गये थे।"

“तुम्हें वहम हो गया है।"

तभी रामू ने दरवाजे से कहा-“मालकिन वो कटे बालों वाली मेम साहब आई हैं।”

"उन्हें ड्राईंग रूम में बैठाओ...मैं आती हूं।"

"तुम उससे क्या बात करोगी...मैं जाता हूं।” विकास ने कहा पर उसका स्वर कांप रहा था।

“तुम कहीं नहीं जाओगे...मैं खुद सम्भाल लेंगी उस औरत को।" सुनीता ने कहा और तेजी से कमरे से निकल गई। विकास सुनीता को जाते देखता रहा।

"हे प्रभु रक्षा करना।” विकास के मुंह से निकला।

"हैलो रूबी।" सुनीता ने कमरे में दाखिल होते हुये कहा।

"हैलो कहो कैसी हो?"

"ठीक तुम बताओ इधर कैसे आना हुआ?"

"आजकल विकास नहीं दिखाई दे रहा है।"

“क्यों विकास का दिखाई देना जरूरी है क्या।"

"आज तुम कुछ उखड़ी हुई हो...फिर आऊंगी।"

"शौक से आना...पर मुझसे मिलने...विकास से नहीं"

आज तक रूबी अपने को अजय समझती थी। उसका कहना था कि उससे कोई नहीं जीत सकता...वह अपने शब्द-जाल में आदमी को ऐसा फंसाती थी कि फिर उसका निकलना मुश्किल रहता था। वह बातों-बातों में हर किसी के दिल का हाल इतनी आसानी से जान लेती थी कि बताने वाले को पता ही नहीं चलता। था कि वह क्या बोल गया है।

पर आज सुनीता ने उसके घपण्ड को चूर-चूर करके रख दिया था। साथ ही उसे अपमानित भी किया था।

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