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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

रूबी के जाने की आहट सुन विकास जल्दी अपने कमरे की तरफ आ गया और बिस्तर में लेट गया।

सुनीता विकास की इस हरकत को देख मन ही मन मुस्कुरा उठी। उसने विकास को काफी सुधार लिया था फिर उसके पास जाकर बोली-“लीजिये आपकी रूबी को रवाना कर दिया...रूबी के नाम से ऐसे डर गये थे...जैसे कोई भूत आ गया हो।”

"क्यों आई थी।"

"आपको ढूंढ रही थी।”

"क्यों?"

"क्या सुना नहीं।"

"भला यहाँ लेटा हुआ मैं कैसे सुनता।"

"दरवाजे के पीछे क्या तुम्हारा भूत खड़ा था।"

"क्या...तो तुमने देख लिया था।”

“मैं आंख बन्द करके नहीं रहती।" सुनीता ने कहा और कमरे से बाहर निकल गई।

आज लता को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी उसे लेने सुनीता ही जाना चाहती थी इसलिये सुबह ही सुबह नहा धोकर तैयार हो गई। विकास के सब जरूरी काम भी उसने पूरे कर दिये। सुनीता मेकअप कर रही थी तभी विकास की आंख खुली। सुनीता को तैयार होते देख विकास का माथा ठनका-"आज सुबह-सुबह कहाँ की तैयारी है।"

“तुमसे कितनी बार कहा...कि सुबह टोका मत करो...पता नहीं आज का दिन कैसा गुजरेगा।” सुनीता ने गुस्से से कहा।

“चलो अब कुछ नहीं कहूंगा...पर आज मैं भी कहीं घूमना चाहता हूं।"

"क्यों?"

“घर में पड़े-पड़े परेशान हो गया हूं।"

"नहीं तुम कहीं नहीं जाओगे।"

"मैं क्यों नहीं जाऊंगा।"

"वो रूबी भूत की तरह तुम्हारे पीछे लग जायेगी।”

"तो क्या मैं घर में ही बन्द रहूंगा।"

“हाँ...आज घर में ही रहोगे।”

तभी रामू ने आकर बताया कि नाश्ता तैयार है। विकास व सुनीता नाश्ते की मेज पर पहुंच गये। सेठ जी व मुकेश पहले से ही वहाँ बैठे थे। चारों ने चुपचाप नाश्ता किया फिर सेठ जी ने विकास से पूछा-"अब कैसे हो?"

“बिल्कुल ठीक डैडी।"

"तुम्हारी कार के लिये मैने इंतजाम कर दिया है...एक सप्ताह में आ जायेगी।” सेठ जी ने कहा।

“पर मेरी कार गई कहाँ है।"

"तुम्हारी कार जल गई है।"

"इसीलिये तुम्हारा बाहर जाना बन्द है।” सुनीता ने बताया।

"पर तुम्हारी कार तो है।"

"उसे मैं ले जा रही हूं...डैडी मैं अस्पताल जा रही हूं।” सुनीता ने सेठ जी से कहा।

"ठीक है।” सेठ जी का स्वर गम्भीर था।

सुनीता उठ खड़ी हुई और चल दी। सुनीता ने लता के विषय में सेठजी से सब कुछ बता दिया था। शुरू से अंत तक कुछ भी नहीं छिपाया था।

सबके बन्द सुनीता ने अपना फैसला भी सेठ जी को सुना.. दिया था। सेठ जी नहीं चाहते थे कि सुनीता का इक किसी को मिले पर सुनीता के जिद्द के सामने सेठ जी को झुकना पड़ा था।

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