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ऐतिहासिक >> गुप्त गोदना

गुप्त गोदना

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : लहरी बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 1984
पृष्ठ :92
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15391
आईएसबीएन :0

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हिन्दी का पहिला ऐतिहासिक उपन्यास

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देवकी नन्दन खत्री का ऐतिहासिक उपन्यास

गुप्तगोदना
पहिला बयान

संध्या होने में कुछ विलम्ब नहीं है. नियमानुसार पूरब तरफ से उमड़ कर क्रमशः घिर आने वाली अंधियारी ने अस्त होते हुए सूर्य भगवान की किरणों द्वारा आकाश के पश्चिमीय खण्ड में फैली हुई लालिमा पर अपनी स्याह चादर का पर्दा बढाना आरंभ कर दिया है। समय पर बलवान होकर विजय-पताका लिये हा शीघ्रता से बढ़ती हुई अपनी सहायक अँधियारी और उसके डर से अपनी हुकूमत छोड़ कर भागी जाती हुई शत्रु लालिमा की विकल अवस्था देख दो एक बलवान तारे मन्द मन्द हँसते हुए आकाश में दिखाई देने लगे हैं। जाड़े के दिनों में कलेजा दहलाने वाली ठंढी हवा आज जङ्गली फूलों की महक से सौंधी हुई अठखेलियों के साथ मन्द मन्द चलकर खुशदिलों और नौजवानों की तबीयत में गुदगुदी पैदा कर रही है। बरसात में उमङ्ग के साथ बढ़ कर दोनों किनारों पर लगे हुए सायेदार पेड़ों को गिरा कर भी संतोष न पाने वाली पहाड़ी नदी आज किसी की जुदाई में दुबली भई हुई बड़े बड़े ढोकों से सर टकराती शिथिलता के कारण डगमगा कर चलती हुई भी प्रेमियों के हृदय को प्रफुल्लित कर रही है । चारा चुगने के लिये सवेरा होने के साथ ही उड़ कर दूर दूर की खबर लाने वाली खूबसूरत चिड़ियाएं विरी आने वाली अंधियारी के डर से लौट कर कोमल कोमल पत्तों की आड़ में अपने अपने घोंसलों के बाहर बल्कि चारो तरफ फुदक फुदक कर मन भावन शब्दों से चहचहा रही हैं। ऐसे समय में एक खुशरू, खुशदिल, खुश-पोशाक और नौजवान मुसाफिर चौकन्ना होकर इधर उधर देखता और एक पत्ते के भी खड़खड़ाने से चौंकता हुआ इस तरह चारोतरफ घूम रहा है जैसे कोई शिकारी कब्जे में आकर निवल गये हुए शिकार की खोज में फिर फिर कर टोह लगाताहो । जिस जङ्गल में यह नौजवान घूम रहा है, पहाड़ी नदी ने बीच में पड़ कर उसके दो हिस्से कर दिये हैं। पूरब वाले हिस्से में तो बहुत ही भयानक और घना जङ्गल है मगर पश्चिमी हिस्से वाला वह जङ्गल बहुत घना नहीं है जिसमें हमारा नौजवान घूम रहा है। नौजवान की उम्र लगभग बीस वर्ष के होगी। चेहरा खूबसूरत, हाथ पर गठीले, पोशाक अमीराना मगर शिकारियों और सवारों के ढङ्ग की सी, तलवार कमर से लटकती हुई और नेजा हाथ में लिये हुए था। जिस घोड़े पर वह यहां तक आया था वह थोड़ी ही दूर पर एक पेड़ के साथ बागडोर के सहारे बंधा हुआ था और उससे थोड़े. ही फासले पर एक जख्मी हरिण जमीन पर बेदम दिखाई दे रहा था।
कुछ देर तक इधर उधर घूमने के बाद उस नौजवान ने अपनी जेब में से सोने की एक सीटी निकाली और उसे मुंह में लगा कर जोर से बजाया और ध्यान देकर सुनने लगा कि कहीं से किसी तरह की आवाज आती है या नहीं मगर दो ही चार पल के बाद उसी तरह की सीटी की आवाज बाईं तरफ वाले जङ्गल में से आई जो बहुत घना और नदी के उस पार अर्थात् पूरब की तरफ था। अब निश्चय हो गया कि वह नौजवान अपने किसी साथी को खोज रहा था मगर जब उसने अपनी सीटी का जवाब पाया तो प्रसन्न होकर यह कहता हआ उसी तरफ रवाना हुआ कि 'व्यर्थ इतना समय रविदत्त की खोज में नष्ट किया । पहिले ही सीटी बजाता तो अब तक पता लग गया होता' ।
इस समय पहाड़ी नदी का पाट पन्द्रह बीस हाथ से ज्यादे न होगा अस्तु नौजवान बहत जल्द उस नदी के पार उतर गया और सीटी की आवाज पर ध्यान देता हआ एक घने पेड़ के नीचे जा पहुंचा और रविदत्त को, जिसकी खोज में धूम रहा था, उस पेड़ के नीचे बेहोश पड़े हुए देख कर चौंक पड़ा।
रविदत्त हमारे नौजवान नायक उदयसिंह का सच्चा दोस्त था । इस समय उदयसिंह की उम्र बीस वर्ष की थी और रविदत्त की उम्र के धागे में पचीस गांठे पड़ चुकी थीं। रविदत्त की शादी हो चुकी थी मगर उदयसिंह अभी तक कुंआरा था। ये दोनों दोस्त शिकार की धुन में घूमते हुए यहां तक पहुंच कर अलग हो

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