लोगों की राय

पौराणिक >> महात्मा

महात्मा

दुर्गा प्रसाद खत्री

प्रकाशक : लहरी बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15395
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एक महात्मा का अद्भुत हाल जिन पर कई दुष्टों ने एक साथ आक्रमण किया

प्रथम पृष्ठ

एक जासूसी उपन्यास

॥ श्री॥
महात्मा
पहिला बयान

घोड़ा गाड़ी, मोटर, लारी, और ठेले बैल गाड़ी की आवाजाही से भरी हुई सड़क के किनारे. पैदल चलने वालों की कशमकश से बच कर, एक बिजली के खंभे के तले अपना मैला टुकड़ा फैलाए सुबह से शाम तक वह बैठा भीख मांगा करता था।
“दाता का भला हो !” “एक देगा हजार पावेगा !'' “कुबड़े पंगुल पर दया हो जाय !" इत्यादि इत्यादि वाक्य बराबर ही उसके मुंह से निकले रहते थे। जो कोई भी उसके सामने से गुजरता, चाहे अमीर हो चाहे गरीब, चाहे औरत हो चाहे मर्द, उसी से वह हाथ उठा कर, अपने मैल से भरे नेत्र फाड़ कर पतले गले से विनीत और कंपित स्वर निकाल कर, अपनी दयनीय दशा देखने और "कछ" देने की प्रार्थना करता।
कभी ही कभी कोई दयावान उसके मैले कपड़े पर कोई धेला या पैसा फेंक देता, सौ दो सौ जाने वालों में से कोई एक या दो ही उसकी तरफ आकर्षित होते और इन जैसे पचासों में से भी कोई ही कोई उसे कुछ देता, फिर भी वह समान भाव से, एक ही आशा से, सभी की दुहाई देता, सभी के आगे हाथ पसारता, सभी से भीख नांगता। और ऐसी भीड़ उधर से गुजरती थी, इतने ज्यादा आदमी उस चलती सड़क से आते जाते थे, कि उसको कुछ दे जाने वालों की संख्या भी कम न थी, नित्य ही वह एक अच्छी रकम पा जाता था।
वह कुबड़ा था, मगर उसकी केवल पीछ ही टेढ़ी न थी, एक एक अंग टेढ़ा था – सिर्फ एक दाहिनी बांह और हाथ को छोड़ कर। सूखे सूखे दोनों पैर करुणाजनक रीति से मुड़ कर पीठ की तरफ आए हुए थे। बांई बांह, हाथ और पंजा, कंधे और कुहनी के पास से दुःखद रीति से टेढ़ा हो कर पीछे की तरफ घूमा हुआ था। पीठ तो टेढ़ी थी ही, दुबली पतली गरदन भी एक तरफ को घूमी हुई थी। हर एक अंग टेढ़ा हुआ भया था और दूर से देखने से वह मांस की एक गठड़ी सा ही प्रगट होता था, सिर्फ जैसा कि हमने कहा, उसका एक दाहिना हाथ भर सीधा था और इसी को उठा कर, आगे बढ़ा बढ़ा कर, वह सब से भीख मांगा करता था।
और लोग तो कभी कदाच कोई कोई ही उसे कुछ देता, पर उस जगह के पास ही से भीतर को गई हुई एक गली में जो प्राचीन देव-मंदिर था उसमें दर्शनार्थ जाने वाली बूढ़ी स्त्रियों में से अधिकांश ही उसे कुछ न कुछ दे जाया करती थीं। चाहे एक मुट्ठी भीगे चावल ही हों, चाहे चना ही हो, चाहे धेला दुकड़ा वा पाई ही हो, पर ये दयालु स्त्रियां अक्सर ही उसको कुछ न कुछ देती थीं ! रईसों, अमीरों, बने ठने और अकड़ते जाने वालों की बनिस्बत इन स्त्रियों से उसको अधिक ही प्राप्त होता रहता था, फिर भी उसकी निगाहें, आशा से भरी, आकांक्षा से भरी, करुणापूर्ण पुकार से भरी, प्रायः उन अमीरों पर ही पड़ती थीं जो मोटरों, जोड़ियों या बध्धियों पर उधर से गुजरते थे। शायद वह समझता था कि इनके कपड़े लत्ते झकाझक हैं, पर वैसा न था, सवारियों पर जाने वालों से शायद ही कभी कुछ उसको मिलता होगा। फिर भी, जैसा हमने कहा, उसको दिन भर की पुकार के फलस्वरूप काफी ही रकम मिल जाया करती थी।
आज शायद कोई पर्व था। सुबह से ही उस मंदिर में जाने आने वालों और वालियों का तांता लगा हुआ था और इसी के फलस्वरूप उसके मैले टुकड़े पर आज बहुत सा चावल चना और धेला पैसा इकट्ठा हो गया था।
मंदिर में दर्शनार्थ जाने वालों, और उस सड़क से कार्यवशात् गुजरने वालों में सभी प्रकार के लोग थे, अमीर भी गरीब भी, और उसके उस मैले टुकड़े पर सभी तरह के सिक्के गिरते थे, पाई और धेला भी, पैसा और इकत्री भी, पर उस टुकड़े पर केवल पाई और धेले ही नजर आते थे, चावलों और चनों के बीच में से झांकते हए। जब कभी कोई पैसा या डकन्नी आ कर गिरती तो उसका वह सीधा और काम में आने लायक हाथ फुर्ती से, चील की तरह झपट्टा मार कर बढ़ता और वह सिक्का फुर्ती से उठ कर उसके फटे कपडे के भीतर की किसी गुप्त खोह में जा घुसता। ऐसा क्यों? क्या धेलों में पैसे और इकनियां भी पड़ी रहतीं तो कोई खतरा था? उन्हें देख अवश्य ही अन्य लोग भी उतना ही देने को आकर्षित होते? नहीं. सो बात न थी। उनके पड़े रहने में जरूर खतरा था, केवल उन छोटे पाजी लड़कों से ही नहीं जो इधर उधर छिपे ताक झांक लगाया करते और मौका मिलते ही कुछ उठा कर भाग जाया करते थे, बल्कि बड़े लड़कों और बड़े शैतानों से भी।
"भों भों" की आवाज हुई और एक साथ ही दो बड़ी मोटरें मंदिर वाली गली के नक्कड पर आ के रुकीं। पहिली पर मर्दानी और पिछली पर जनानी सवारी थी। अवश्य ही ये दर्शनार्थी थे, अवश्य ही इनसे कुछ मिल सकता था। कुबड़े ने अपनी तृषित आंखें उन मोटरों पर से उतरने वालों पर लगाई - और आवाज लगाई, “कुबड़े पंगुल पर दया हो जाय ! कुछ भीख मिल जाय !!" पर कुछ ज्यादा असर न हुआ।
एक लड़के ने उसकी तरफ देखा, दो एक स्त्रियों ने उधर निगाह फेरी और सिहर कर आँखें घुमा लीं, तब सब लोग फर्ती से गली में घुस गये, दर्शनों के निमित्त। उसका अंग प्रत्यंग ऐसा टेढ़ा मेढ़ा था, बदन ऐसा सूखा साखा, कपड़े ऐसे मैले कुचैले फटे चीथड़े कि देख के करुणा के स्थान पर अक्सर वीभत्स आ जाता था। लोग उसकी...

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book