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आख्यायिका
आख्यायिका
प्रकाशक :
जे बी एस पब्लिकेशन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2022 |
पृष्ठ :92
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 16013
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आईएसबीएन :9789382225744 |
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5 पाठक हैं
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23 कहानियाँ
दो शब्द
किस्सा-कहानी का प्रचलन सारे विश्व में आदिकल से है। हमारे देश में भी इस विधा के प्रचलन में कोई कमी नहीं रही। पुराने जमाने में बड़ी बूढ़ियाँ, दादा-नाना अपने बच्चों के मनोरंजन के लिए मन गढन्त किस्से सुनाते थे और बच्चे भी उन्हें काफी चाव से सुनते थे। यहाँ तक कि कभी-कभी बच्चे बड़े-बूढ़ों से स्वयं ही जिद करते थे और उन बड़ो को किस्से सुनाने पड़ते थे। विश्व के अनेक देशों की तरह हमारे देश में भी किस्सा एक नये रूप में विकसित होने लगा और जहाँ पहले के किस्सा-कहानियों में सिर्फ मनोरंजन था, कोई सारगर्भिता नहीं थी वहीं परिवर्तन के साथ उन कहानियों में सारगर्भिता के साथ कुछ सीख का भी पुट रहने लगा। कुछ और आगे प्रगति होने पर इन किस्सों-कहानियों को साहित्य में भी स्थान मिलने लगा और अनेक कहानी लेखक आगे आये जो अपनी कहानियों द्वारा साहित्य के खजाने को भरने लगे। उन कहानियों में कुछ छोटे फलक की तो कुछ बड़े फलक की कहानियाँ लिखी जाने लगीं। छोटे फलक की कहानियों में सब से अग्रणी नाम मुंशी प्रेमचंद का आता है, जिन्होंने हिंदी साहित्य को पचास से ज्यादा कहानियाँ दी जो मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा प्रदायिनी भी हैं। इसी बीच में अनेक कथाकारों ने साहित्य के कोश को भरा जिनकी कहानियाँ कई-कई वर्षों को अपने कलेवर में समाहित किए हुए थीं। उग्र जी इन्हीं कथाकारों की पंक्ति में आते हैं। जयशंकर प्रसाद जी की कहानियाँ कहानी विधा के श्रेष्ठतम रूप में सामने आती हैं, जिन्हें साहित्य की क्लासिकल कहानियाँ कहा जा सकता है। इसके अलावा जैनेन्द्र जी, सुदर्शन इत्यादि कथाकारों से मनोरंजन के साथ भावना को भी अपनी कलम से उकेरा और पाठकों को भरपुर मनोरंजन और शिक्षा से ओतप्रोत किया। आज के दौर में अनेक लम्बी कहानियों का भी प्रचलन शुरू हुआ जो मनोरंजन की दृष्टि से भरपूर नहीं पर फलक और पारिवारिक दर्द को उभारने में पूरी तरह सफल रही है। पिता और तिरिछ इसी तरह की कहानियाँ हैं। इस तरह देखा जा सकता है कि किस्से जो कभी सिर्फ बच्चों के मनोरंजन के साधन थे साहित्य जगत में पहुच कर बुद्धिजीवियों को भी मनोजित करने लगे ।
मैंने भी कुछ कहानियाँ लिखी हैं पर कह नहीं सकता वे कहानियाँ पाठक वर्ग को आनंदित और रोमांचित कर सकेंगी या नहीं। फिर भी अपनी ओर से अपनी समझ बूझ के अनुसार मैंने प्रयास किया है जो पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।
- त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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- दो शब्द
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