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आख्यायिका

त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी

प्रकाशक : जे बी एस पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :92
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16013
आईएसबीएन :9789382225744

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23 कहानियाँ

पहली तनख्वाह


बड़का सुनता है क्या? जरा मेरे लिए एक घड़ा पानी ला देना, मैं नहाऊँगी। नानी ने दुल्लू से कहा, जो नानी के पास छोटी उम्र से ही, अपने माँ-बाप के पास से आकर रहने लगा था। दुल्लू अपने साथियों के साथ खेलने में मशगूल था, अत: नानी की बात उसने नहीं सुनी और नतीजा यह हुआ की नानी मारे क्रोध के उसके पास पहुंच गई और जमा कर एक थप्पड़ गाल पर रसीद कर दिया। इस तरह के नानी के थप्पड़ प्रयोग पर दुल्लू के साथ-साथ उसके सभी साथी भी हतप्रभ रह गए, मानों कोई अघटन घटना घट गई हो और खेल जहाँ पर था, वहीं रुक गया। दुल्लू ने नानी से पूछा, तुमने मुझे किस लिए मारा? नानी ने कहा-मैं कब से चिल्ला रही हूँ कि मेरे लिए एक घड़ा पानी ला दे, मुझे नहाना है, पर तू है कि सुनता ही नहीं। यदि मैं नहाऊँगी नहीं, तो तेरे लिए खाना कैसे बनाऊँगी? दुल्लू ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और अपने दोस्तों से विदा लेकर नानी की आज्ञा-पालन हेतु खेल से वापस आ गया।

दुल्लू के साथ ही नानी भी वापस आ गई और दुल्लू को पास बुलाकर पूछा-तू दुखी है क्या? क्या ज्यादा जोर से मार लगी है? दुल्लू ने नानी की तरफ अश्रुपूरित आँखों से देखा और रुआँसा होकर बोला-नहीं नानी, तुम तो नानी हो और नानियों का थप्पड़ जोर से थोड़े ही लगता है? और घड़ा लेकर कुँए की तरफ चल पड़ा। इधर नानी का क्रोध उतर चुका था और क्रोध का स्थान ग्लानि ने ले लिया था। नानी अपने अंदर ही अंदर इस तरह के क्रोध की भर्त्सना करने लगी और सोचने लगी-मुझे दुल्लू को थप्पड़ मारते हुए पड़ोस के लोगों ने देखा है, पता नहीं वे लोग क्या सोचेंगे? कहीं यह खबर उसके माँ-बाप के पास तो नहीं पहुंचा देंगे? यदि यह खबर पहुँच ही गई तो उसकी माँ मुझसे इसका कारण पूछेगी, तब मैं क्या उत्तर दूंगी? नानी इसी सोच में डूबी थी कि दुल्लू पानी लेकर वापस आ गया और नानी को संबोधित करते हुए बोला-नानी नहाले और जल्दी से खाना पका, बहुत जोर की भूख लगी है। नानी ने बिना जवाब दिए या उसकी ओर देखे वैसी ही अपनी विचार-धारा में बह रही थी। दुल्लू नानी के नजदीक पहुँच कर उसे हाथ से छूकर बोला-नानी पानी लाया हूँ नहा ले। दुल्लू के हाथ का स्पर्श लगते ही नानी की चेतना लौटी और उसने दुल्लू को खींच कर अपने अंक में भर लिया और फफक-फफक कर रो पड़ी। दुल्लू यह नहीं समझ सका कि नानी रोने क्यों लगी। नानी को चुप करा कर दुल्लू ने उसके रोने का कारण पूछा तो नानी ने कहा-तेरे सिवा मेरा इस दुनिया में है कौन? पर मैं कैसी निर्दयी हूँ कि बिना कुछ विचार किए ही तुझे मार बैठी। दुल्लू ने नानी को सांत्वना देते हुए कहा-नानी, तू मेरी नानी तो कहने मात्र की है, तू तो मुझे मेरी माँ का स्नेह देती है, भला तेरी इस मार का मैं बुरा कैसेमान सकता हूँ? और बात आई-गई हो गयी और दुल्लू और नानी की दिनचर्या पुनः पूर्ववत् ठीक-ठाक से चलने लगी।

दुल्लू ने अब पढ़ लिख कर नौकरी कर ली है। आज दुल्लू को पहली तनख्वाह मिली है। उसने सोचा कि पहली तनख्वाह के पैसे वह किसके पास भेजे? दुल्लू यह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वह पैसे माँ-बाप के पास भेजे, जिन्होंने उसे जन्म दिया या नानी के पास, जिन्होंने उसे कर्म दिया और इस लायक बनाया कि आज वह कुछ कमाने की स्थिति में आ सका है। दुल्लू दूर किन्हीं विचारों में खो गया-नानी का जीवन दुखों की गठरी। जीवन के अठारहवें वसंत में ही वैधव्य, पहाड़-सी जिंदगी और काँटों भरा मार्ग, जिस पर नानी को चलना है और अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है। नानी ने अपने जीवन के सारे सुखों को तिलांजलि दे दी और गृहस्थ होते हुए भी उसका जीवन सन्यासिनियों का जीवन बन गया। नानी के मुख से हँसी उसी तरह विलीन हो गयी, जिस तरह क्वाँर मास में आकाश से बादल बिलीन हो जाते हैं। नानी की जिंदगी में दुल्लू की माँ भर ही एक मात्र सहारा थी और उसी रज्जु को हाथ से थामे हुए नानी इस दुख भरी जिंदगी के अँधेरे को पार करने का प्रयास करती रही। दुल्लू के माँ की शादी होने के बाद जब दुल्लू का जन्म हुआ और तीन वर्ष पूरे हुए, तभी से नानी ने दुल्लू को अपने पास रख लिया और अपनी नीरस जिंदगी में दुल्लू के प्यार की ठंडाई भरने लगी। नानी की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी अतः फाँके पड़ना आये दिन के व्यापार थे, पर नानी ने दुल्लू को कभी भी भूखा नहीं रहने दिया और खुद उपवास में दिन काट लिए। ठंडी के मौसम में भी नानी खुद ठंड में आग ताप कर समय काटती रही और दुल्लू को ठंड न लगे इसकी व्यवस्था करती रही। दुल्लू ने अठारह की उम्र पार की और थोड़ा-बहुत पढ़-लिखकर नौकरी में लग गया।

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    अनुक्रम

  1. दो शब्द

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