लोगों की राय

कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल

महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल

उमा शंकर गुप्ता

प्रकाशक : महाराजा मणिकुण्डल सेवा संस्थान प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :316
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16066
आईएसबीएन :978-1-61301-729-6

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य

अयोध्या में अपना घर, व्यापार, सुख-सम्पदा त्याग कर प्रभु श्रीराम की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान भटक रहे मणिकुण्डल जी ने राम जी की खोज को अपने जीवन की शाश्वत प्रक्रिया से जोड़ लिया। और इसे जीवन में सतत चलने वाला कार्य समझ कर अधोलिखित सिद्धान्त को अपनाया था -

"जीवन का यह चक्र नहीं रुकने वाला है।
जीवन का रथ कभी नहीं थमने वाला है।
इसमें मिले पड़ाव समझ ली मंजिल जिसने
पल प्रतिपल हो दूर वहीं थकने वाला है।"

इसी विश्वास एवं उसके पालन के परिणामस्वरूप उन्हें प्रभु श्री राम की प्राप्ति हुई, दर्शन हुये, आशीर्वाद प्राप्त हुआ। परन्तु उन्हें इस जीवन क्रम में तमाम संघर्ष एवं परीक्षाओं का सामना करना पड़ा। वस्तुतः यह संघर्ष एवं परीक्षायें मनुष्य को अग्नि में तपाकर कुन्दन बनाने का कार्य करती है। यदि जीवन में संघर्ष और परीक्षायें न हो तो व्यक्ति की प्रखरता नहीं हो पाती है। मेरे विचार से संघर्ष हीन जीवन ऐश्वर्य युक्त होने के बावजूद नीरस एवं अवर्णनीय होता है। उसमे ऐसा कुछ विशेष नहीं होता जो कथ्य या प्रशंसनीय हो । यदि श्री राम को वनवास एवं राक्षसों से संघर्ष का अवसर प्राप्त नहीं हुआ होता तो वे मात्र एक राजा होते भगवान नहीं। किसी व्यक्ति को इंसान से भगवान या मानव से महामानव बनाने का माध्यम संघर्ष ही है, जिसमें इस बात की परीक्षा होती है कि संघर्ष के समय पर हम अपनी आस्था, विश्वास, सिद्धान्त, व्यवहार सदाचार व कर्तव्य पालन पर कितने दृढ़ रहते है। मणिकुण्डल जी के जीवन में राम-भक्ति, धर्म, पुण्य, सत्य, सदाचार की ज्योति का प्रकाश आत्मसात था। सभी के प्रति आदरभाव, मित्र धर्म का पालन, वचन को पूर्ण करना, क्षमाशीलता, ईश्वरीय शक्ति पर पूर्ण विश्वास और लोक कल्याण का भाव इत्यादि मणिकुण्डल जी के वैशिष्ट्य है। प्रभु श्री राम के आशीष एवं अंहिसा के प्रति अनुराग के कारण उन्होंने बिना शस्त्र धारण किये जीवन भर चक्रवर्ती महाराजा के रूप में शासन किया। उन्होंने क्षत विक्षत करने वाले विश्वासघाती गौतम को क्षमा करते हुये मित्र धर्म एवं क्षमाशीलता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

इतनी ही नहीं वरन्, धर्म, नीति, राजनीति, समाजनीति, व्यापार नीति इत्यादि का सम्यक ज्ञान होना भी उनके व्यक्तित्व का वैशिष्ट्रय है। अन्तरिक्ष और खगोल विज्ञान पर उनका गहन अध्ययन ही 'मणिकुण्डल के सृष्टि सिद्धान्त' का आधार है। जिसके द्वारा हम जान सकते है कि इस सृष्टि की, संसार की, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति किस प्रकार हुई और इनमें कितने रहस्य छुपे हुये हैं। तमाम रहस्यों का उद्घाटन तो 'मणिकुण्डल के सृष्टि सिद्धान्त में हो गया है। परन्तु अभी भी तमाम सिद्धान्त हैं, जिन्हें जानना बाकी है। ऐसा ही एक सिद्धान्त है "आकर्षण का सिद्धान्त।" वस्तुतः आकर्षण का सिद्धान्त सृष्टि के पूर्व से स्थापित है। आकर्षण के सिद्धान्त में किसी भी कार्य या सृष्टि रचना का प्रथम बिन्दु विचार है। विचार ब्रह्म का आदिरूप है। उसी से नाद, प्रकाश, सूर्य, आकाशगंगायें, ग्रहों इत्यादि की उत्पत्ति हुई है अर्थात सृष्टि-रचना के विचार से ही सृष्टि रचना हुई है। विचार के आधार पर ही उनमें परस्पर समानता या असमानता दिखती है। विचारों ने जिस ग्रह पर जो सामग्री, शक्ति या जीवन प्रदान किया उन्हें केवल उन्हीं की प्राप्ति हो सकी है। विचार का अनुपम उपहार है तरंगे। तरंगे दो प्रकार की हैं पहली मानस तरंगे दूसरी अन्य तरंगे। अन्य तरंगों के रूप में हम लोग इलेक्ट्रानिक तरंगों का आधुनिक युग में अन्तर्जाल (Internet) का उपयोग है। चन्द्रयान, मंगलयान को नियन्त्रित करते है। दूसरी आकाशगंगा के चित्र सम्पर्क एवं जानकारी का प्रयास करते है। वहीं मानस-तरंगों के बल पर बिना आधुनिक उपकरणों के मस्तिष्क ब्रह्माण्ड द्वारा एक ऋषि/देवता दूसरे से नेत्र बन्द कर एकाग्र हो सम्पर्क एवं परस्पर संवाद कर लेते थे। आज भी मानस तरंगे विद्यमान है। यदि सिद्धता का थोड़ा सा प्रयास किया जावे तो हम अपने मन मस्तिष्क का प्रभाव बिना कुछ बोले दूसरे के मन मस्तिष्क पर डाल सकते है। सौभाग्य से विचार -संवहन के छोटे छोटे प्रयास मेरे द्वारा किये गये जो सफल रहे। इन्हें ही आकर्षण का सिद्धान्त कहते है। प्रायः इसी कारण लोग कहते है कि भगवान या अपने इष्ट से सच्चे मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है। मन मष्तिष्क के विचार, अभीष्ट शक्ति एवं उसका संवहन सदैव आकर्षण के सिद्धान्त से ही सम्भव होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai