कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल महामानव - रामभक्त मणिकुण्डलउमा शंकर गुप्ता
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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य
कुछ विशिष्ट स्थानों का वर्णन करते हुए जिन नामों का उल्लेख किया है उनमें रामटेक घाटी, सिवनी, नर्मदा तट, भेड़ा घाट, शारदा मैहर, चित्रकूट तमसातट, शरभंगा आश्रम, कामद गिरि, हनुमान धारा, ब्रहमावर्त (बिठूर) लोधेश्वर महादेव, पारिजात वृक्ष आदि का दर्शन करते हुए वे श्री अयोध्या धाम पहुँच गये और अगले दिन श्री राम प्रभु के दर्शन करने के लिए बहुत सारा उपहार लेकर पहुंचे, श्री राम की वन्दना की। श्री राम ने भी बहुत सम्मान दिया तथा स्नेहपूर्वक - श्री मणि कुण्डल जी से मिले- जन्म और जीवन की चरम और परम अभिलाषा पूर्ण हुई।
मनुष्य को यह जीवन काल अवसर देता है कि वह अपने पुरुषार्थ से कुछ कर जाय कि उसके जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियाँ उसके द्वारा किये गये शुभ कार्यों को याद करें। शास्त्रों में यह पुरुषार्थ कहा जाने वाला परम प्राप्तव्य है। श्री मणिकुण्डल जी अपने देश, धर्म तथा कर्तव्य और कर्म करने वाले आदर्श महापुरुष थे। वह परम उदार थे। उनकी सवृत्ति से उनका परिवेश पवित्र हुआ था। समाज में शुचिता का विकास हुआ था और प्रेम, सहानुभूति, दया, क्षमा तथा न्याय और सत्य का राज्य स्थापित हुआ था। वह धर्म प्राण जीवन के आदर्श थे। श्री राम के परम भक्त थे तथा मर्यादा पुरुषोत्तम के आदर्शों पर चलकर समस्त मानव समाज के लिए ज्ञान के प्रकाश, मधुरता, सरलता, सहजता का आश्वासन थे। धर्म-अर्थ और काम में अनुशासन से उन्होंने मोक्ष तक की परम प्राप्ति को प्राप्त कर लिया था। वैश्य समाज ने उदारता पूर्वक अपने धन का सदुपयोग करते हुए सदैव ही दान शीलता का मार्ग अपनाया है। व्यापार से जो अर्थ और आर्थिक प्रगति प्राप्त होती है उसका नीति पूर्वक सामाजिक वितरण करते हुए अपने लाभ को राष्ट्र सेवा में अर्पित करने का काम सदैव ही वैश्य समाज ने किया है। इस महामानव ने अपने आदर्श चरित्र से मानवता की सेवा करते हुए स्वार्थ, संकुचित विचार, लोभ व ईर्ष्या तथा दम्भ से दूर रहने का आचरण अपनाया था। आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए मनो निग्रह का मार्ग अपनाते हुए साधना पूर्वक संकल्प बल से अपने परम पुरुषार्थ को प्राप्त किया था। गुण त्रयी-सत-रज और तम से व्याप्त संसार में आत्म कल्याण का स्वयं अनुशरण किया था तथा अपने आचरण से अपने समाज और अपनी जाति और राष्ट्र को आदर्श जीवन का मार्ग प्रशस्त किया था। वह अपने समय में प्रासंगिक थे, और आज भी प्रासंगिक हैं। समस्त मानव समाज उनके आदर्शों पर चलकर जीवन में सुख-शान्ति और सम्पन्नता का आर्शीवाद प्राप्त करता रहेगा। यह महाकाव्य और इसका प्रणेता भी अमर होगा। युग-युग तक उसे श्री समृद्धि और यश की प्राप्ति होती रहेगी।
- डॉ० सूर्य प्रसाद शुक्ल
११६/५०१-सी, दर्शनपुरवा,
कानपुर - २०८०१२ (उ०प्र०)
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