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संवाददाता

जय प्रकाश त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16194
आईएसबीएन :978-1-61301-731-9

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इकतीस अध्यायों में रिपोर्टिंग के उन समस्त सूचना-तत्वों और व्यावहारिक पक्षों को सहेजने का प्रयास किया गया है, जिनसे जर्नलिज्म के छात्रों एवं नई पीढ़ी के पत्रकारों को अपनी राह आसान करने में मदद मिल सके

"एक रोज 'आज तक' में काम करने वाले मेरे अपने सहपाठियों से नाम और फोन नंबर लेकर फिर पहुँच गई। इस बार अच्छा स्वागत हुआ। अंदर भी जाने दिया गया और लोगों ने अदब से बात भी की। पहली बार मैंने किसी चैनल के दफ्तर को इतने करीब से देखा था। आंखें चौधिया रही थीं। गाँव में देखा सपना पूरा होने की उम्मीद जाग गई थी। पर लम्बे इंतजार के बाद उन सभी ने कुछ-न-कुछ बहाना बनाकर मिलने से मना कर दिया और मैं नम आंखों से लौटने लगी तो एक सज्जन ने मेरा सीवी ले लिया और कहा, हम जल्द ही आपसे संपर्क करेंगे। तब सोचा, चलो ठीक है, कम से कम यहाँ पैर रखने को जगह तो मिलेगी। फिर धीरे-धीरे अपने अच्छे काम से, चैनल में आ जऊंगी, पर दिन बीतते गए, कोई खबर नहीं। उसी दौरान एक फ्रेशर मिल गया, जो अकसर मेरी इस जद्दोजहद को देखता रहा था। उसने बताया कि आपका यहाँ दिल्ली में न तो कोई गॉड फादर है, न आपके पास कोई बड़ी एप्रोच और न ही पैसा तो आप सोच भी कैसे सकती हैं, यहाँ जॉब पाने को। आपको ट्रेनिंग या इंटर्नशिप पर भी नहीं लिया जाएगा। यहाँ आकर वक्त बरबाद न किया करें। देखिए, बेहतर होगा, आप अपने शहर ही लौटकर वहाँ छोटे-मोटे चैनल्स में ट्राई करें। मेरी बातों का बुरा न मानना, यही जिंदगी की वास्तविकता है।...मैं आज फिर सोचती हूं, मेरा मीडिया में जाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो क्या हुआ, आज मेरा अपना एक मुकाम है, मेरा अस्तित्व है, अपनी एक अलग पहचान है, जो पहचान मैंने स्वयं अपने बुलंद हौसलों और अदम्य साहस से बनाई है।"

अब आइए, किंचित उन विचारों से अवगत हो लेते हैं, जिनके सुचिंतन के साथ इस सृजन को पंख लगे। मीनाक्षी गिगि दुरहम और डगलस एम केलनर के शब्दों में 'शासक वर्ग ऐसे बुद्धिजीवियों और संस्कृति नियंताओं को काम में लगाता है जो प्रभुत्वशाली संस्थाओं और जीवन शैलियों का महिमामंडन करने वाले विचारों की उत्पत्ति करते हैं। ये बुद्धिजीवी साहित्य, प्रेस, फिल्म और टेलीविजन जैसे माध्यमों में शासक वर्गीय विचारों का प्रोपेगैंडा करते हैं।' ऐसे में पत्रकारिता अथवा रिपोर्टिंग के पहले पाठ के लिए अकादमिक ज्ञान जितना ही मीडिया चिंतकों के अनुभव भी अतिमहत्वपूर्ण हो जाते हैं। मीनाक्षी गिगि दुरहम और डगलस एम केलनर के शब्दों से साफ है कि समकालीन मीडिया आज कहाँ खड़ा है और वह अपने किन प्राथमिक उद्देश्यों और जरूरतों के लिए किधर जा रहा है। वैश्विक पहचान के जाने-माने मीडिया चिंतक नोम चोम्स्की प्रतिप्रश्न करते हैं कि आज मुख्यधारा के मीडिया के निर्माण तत्व और प्रकृति क्या है? वह कहते हैं कि मीडिया का अध्ययन करते समय एक सुनियोजित जांच प्रक्रिया से गुजरना चाहिए, जिसमें कल के वक्तव्य को आज के परिप्रेक्ष्य में पिरोया गया हो। मीडिया, किसी स्कॉलरशिप के अध्ययन या बुद्धिजीवियों के जर्नल से अलग नहीं है। अगर मीडिया अथवा किसी संस्थान को समझना है तो उसका अवलोकन करते समय इसके आंतरिक संस्थागत संरचना से सवाल करना होगा। सर्वप्रथम बृहत्तर समाज में इसकी संस्थापना से जुड़ी चीजों को जानना होगा। यह प्रक्रिया एक रुचिकर दस्तावेज एकत्र करने जैसी हो सकती है।

हमारे समय के प्रशिक्षु पत्रकारों को आगाह करते हुए वह कहते हैं कि आज के मीडिया का मिजाज समझने के लिए किसी सधे शोध वैज्ञानिक की तरह सूचना के तीन प्रमुख स्रोतों से वाकिफ होना होगा। मीडिया का अध्ययन करते समय पहले मीडिया उत्पादों की जांच से अपनी संकल्पना की पुष्टि करनी होगी। मीडिया अध्ययन के समय सावधानीपूर्वक मीडिया उत्पादों की परख जरूरी होती है। मीडिया के अलग-अलग रूपों का काम भी भिन्न होता है। मसलन, मनोरंजन, टीवी और अखबार के काम, अलग-अलग। साथ ही एजेंडा सेटर अभिजात मीडिया, जो आजकल अकूत संसाधनों से लैस है। वह जानता है कि उसका पहला पाठक-दर्शक किस वर्ग से आता है, धनी वर्ग, पॉलिटिकल वर्ग, मैनेजर, बिजनेस मैन, डॉक्टोरल आदि। वह इन वर्गों के लिए रूपरेखा सेट करता है। उसके आधार पर अन्य लोग परिचालित करते हैं। एजेंडा सेटर संपादकों को यह यह बताने की कोशिश करते हैं कि खबर वह नहीं, जो वे मान रहे, खबर वह है, जिसके बारे में संपादकों को सोचने की जरूरत ही नहीं है। उन एजेंडा सेटर्स के बीच से ही एक दोराहा सिरहाने बैठे सत्ता प्रतिष्ठानों का भी गुजरता है, जो गुमराह करने के लिए नाना प्रकार के ताने-बाने बुनता है। जो भी उसकी अनदेखी करता है, बीच रास्ते लुढ़काया जा सकता है। एजेंडा सेटर्स के लिए प्राथमिक होती हैं चटपटी सूचनाएं, ताकि आम लोगों का मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाए रखा जा सके। मसलन, पेज थ्री के प्रोफेशनल, पर्सनालिटी, सेक्स स्कैंडल जैसी बातें। मीडिया कंपनियां बड़े औद्योगिक घरानों के रहमोकरम पर चलती हैं, जिनके आका शीर्ष सत्ता संरचना के हिस्सेदार होते हैं। उनके इशारों पर ट्रेंड सेटर को नाचना होता है वरना नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। तो ऐसे ही पाठ प्रोपैगेंडा एजेंसियों द्वारा भी पढ़ाए जाते हैं। इन हालात से यह पुस्तक सुपरिचित कराती है।

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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