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शब्द-शब्द परमाणु

जय प्रकाश त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16195
आईएसबीएन :978-1-61301-732-6

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शस्त्र का अर्थशास्त्र और तीसरा विश्वयुद्ध : शब्द-शब्द परमाणु

अब तक विश्व में ज्यादातर बड़े युद्ध व्यापार, उद्योग और मुनाफे के लिए लड़े गए हैं। युद्ध होगा तो हथियार बिकेंगे। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पहले हथियार और युद्ध सामग्री बेंचने के लिए युद्ध करवाती है। युद्ध से विनाश होता है, फिर विकास के लिए क़र्ज़ देती है, तकनीक बेंचती है और युद्ध प्रभावित देशों की राजनीति और आर्थिक नीतियों पर कब्ज़ा कर लेती है। जब देवी-देवता तक हथियारों से लैस रहते हों, विश्व के महान शान्तिदूतों ईसा मसीह, मोहम्मद, बुद्ध, महावीर, अशोक, कार्ल मार्क्स, कबीर, गांधी के साथ ही, शांति पर शब्द-सृजन कर नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित होने वाले कवि-लेखकों, विद्वानों के संदेशों के क्या मायने रह जाते हैं। दुनिया में आदमी की भूख का मसला एक तरफ़, आधुनिकतम हथियारों के सौदागरों और शासकों का तांडव एक तरफ़। युद्धों-विश्वयुद्धों के साथ शब्दों की बात करें, सृजन की, कविताओं की तो पोलिश कवि तादेयुश रोज़ेविच की पंक्तियां सारा भेद खोलकर रख देती हैं-

'शब्दों का इस्तेमाल किया जा चुका है
चुइंगम की तरह उन्हें चबाया जा चुका है
सुन्दर जवान होठों द्वारा
सफ़ेद फुग्गों, बुल्लों में बदला जा चुका है

राजनीतिकों द्वारा घिसे-रगड़े गए
उनका इस्तेमाल दांत चमकाने और मुँह की सफाई के लिए
कुल्ले-गरारे में किया गया
मेरे बचपन के दिनों में
शब्दों को मरहम की तरह
घावों पर लगाया जा सकता था

शब्द दिए जा सकते थे उसे
जिसे तुम प्यार करते थे

घिसे- बुझे
अखबार में लिपटे
शब्द अब भी संक्रामक हैं
... अब भी उनसे भाप उठती है
अभी तक उनमें गंध है
वे अभी भी चोट पहुँचाते हैं

माथे के भीतर छिपे हुए
छिपे हुए हृदय के भीतर
पवित्र पुस्तकों में छिपे हुए
वे अचानक फूट पड़ते हैं
और मार डालते हैं।'

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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