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शब्द-शब्द परमाणु

जय प्रकाश त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16195
आईएसबीएन :978-1-61301-732-6

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शस्त्र का अर्थशास्त्र और तीसरा विश्वयुद्ध : शब्द-शब्द परमाणु

ऐसे में पहले, दूसरे के बाद दुनिया अब तीसरे विश्वयुद्ध की ओर है। मानवता अपनी खूबसूरत दुनिया को इन सनकी सफ़ेदपोशों के चंगुल से कैसे बचाए! दुनिया के मुख्य पाँच बड़े शस्त्र-निर्यातक देश अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी हैं तथा पाँच बड़े आयातक देश भारत, सऊदी अरब, पाकिस्तान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात। इस खूबसूरत दुनिया सबसे क्रूर-कुरूप महाशक्तियों और शासकों ने मनुष्यता के लिए, जो भी खाली स्पेस रहा था, उसे खिलौनों के बाजार तक तोप, बंदूक, टैंक, सैन्य पोशाकों से पाट डाला है। मासूमों के दिमाग में हिंसा का ज़हर भरा जा रहा है। हिरोशिमा-नागासाकी से भी सबक न लेते हुए, शस्त्र खरीद की अंधी दौड़ में शामिल सभी सौदागरों को पता है कि सामान्य-से नाभिकीय बम के विस्फोट से भी निकले डेढ़ लाख टन रासायनिक विकिरण से दस वर्षों तक धूप घट सकती है। फसलों और मवेशियों की बेतहाशा मौतें हो सकती हैं। ईरान के कवि सबीर हका अपनी 'बंदूक' कविता में चिंता जताते हैं -

'अगर उन्होंने बन्दूक़ का आविष्कार न किया होता
तो कितने लोग, दूर से ही
मारे जाने से बच जाते,
कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं,
 उन्हेंज मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी
कहीं ज़्यादा आसान होता।'

आदमी महामारी से मरे, भूख से मरे या जनक्रांतियों में, युद्धों में, कितने लोग विदा हो जाते हैं, इसकी गिनती शोकाकुल करती है। युद्धों का इतिहास दहशत से भर देता है। इन दहशतों के भी सौदागर हैं, जब से दुनिया में युद्ध होते आ रहे हैं। शांति-शांति के शोशे और श्माशानों का जघन्य राग, दोनों के बीच फंसी इंसानियत अपने होने की जितनी कीमत अब तक दे चुकी है, सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, दिल कांप उठता है। आधुनिक विश्व के हर सचेत, इंसाफ़ पसंद नागरिक को यह यक्ष प्रश्न हमेशा विचलित करता है कि युद्ध क्यों होते हैं? हद है कि अब तक के ज्यादातर युद्धों के पीछे उन्हीं शक्तियों का उन्माद रहा है, जिन्हे समय और मानव समाज को सभ्य बनाने का भी जनमत मिलता है। और उन्हीं का आज भी, विश्व मानवता पर आदमखोर प्रभुत्व है। जब उनका क्रूर अट्टहास हुंकारता है कि 'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति', युद्ध के मैदानों से रोबेर्तो फ़ेर्नान्दिस रेतामार जैसे तमाम सृजनधर्मी हमे बार-बार 'बदलाव' की ओर आगाह करते हुए पूछते हैं-

'...हम, जो दोस्त बच गए हैं,
हम इस जीवन के लिए किसके देनदार हैं
मेरे लिए काल-कोठरी में किसने जान दे दी
मेरी ओर आ रही गोली को
किसने अपने दिल पर रोका
शहीद हुए लोगों में से किसकी वजह से मैं ज़िन्दा हूँ
मेरी हड्डियों में किसकी हड्डियों का दर्द समाया हुआ है
मेरी भौहों के नीचे से किसकी निकाल ली गई आँखें देख रही हैं
किसके हाथ से लिख रहा हूँ मैं
(आख़िर मैं किसी और के हाथ से लिख रहा हूँ) 
यह फटा हुआ शब्द यानी, मैं
बचा है उस आदमी से, जो मर चुका है।'

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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