नई पुस्तकें >> शब्द-शब्द परमाणु शब्द-शब्द परमाणुजय प्रकाश त्रिपाठी
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शस्त्र का अर्थशास्त्र और तीसरा विश्वयुद्ध : शब्द-शब्द परमाणु
और अंततः; "समाज-विज्ञानियों-चिंतकों, विश्व मानवता के प्रहरियों, कवि-साहित्यकारों के विचारों के संकलन" और कृष्णा सोबती के शब्दों के साथ, यह कृति आपके हाथों में कि 'लेखक के वजूद और व्यक्तित्व में अगर कुछ संचित है तो वह साधारण का ही विशेष है। शायद यही वह बिंदु है, जहां, एक बड़ी बिरादरी सोच-विचार के माध्यम से उसके साथ जुड़ती है। अनोखा है यह खेल भी कि लिखता कोई और है, लिखवाता कोई और है, और पढ़ता कोई और है। पाठक और लेखक की जुगलबंदी विचित्र है। मौजूद नहीं है और मौजूद है। पास नहीं है, दूर है मगर नितांत निकट है। यह खेल लेखन का है। कृति-कृतिकार और कृतित्व के प्रतीकों में पाठक का अपना संवेदन अनुभव दूर बैठकर लिखे गए शब्दों के अर्थ में प्रवाहित होने लगता है। और लेखक जाने किस असमंजस में अपना सामना करने में कतराता है, कभी अपने को बचाता है, अपनी दोस्ती को दुश्मनी समझने लगता है, अकेलेपन से घबराकर अपने को भीड़ में खड़ा पाता है, भीड़ में अपने को ढूंढने लगता है। और अपने को खोकर दूसरे को पा लेता है।...लेखक हाशिये से न पन्ने को झांकता है, न जिंदगी को। यह बात एक अच्छे और खरे लेखक के संदर्भ में कही जा रही है। साहित्य विशेष है। फिर भी उसका अपना लोकतंत्र है। इसी में सर्वसाधारण से जुड़ी निहित है इसकी स्वायत्तता भी।' आदिम बर्बरता के विरुद्ध लिखित-संकलित, चाहे जैसी भी, 'शब्द-शब्द परमाणु' की उपस्थिति उन सबके लिए, जिन्हे किसी भी तरह के युद्धों से घृणा है, जिनके अपने युद्धों, नरसंहारों में अथवा महाशक्तियों के विध्वंसकारी षड्यंत्रों में मारे गए या मारे जा रहे हैं, यह उनका भी आईना, जिन्होंने पूंजी की अंधी भूख में स्वयं को पहचानने से इनकार कर दिया है। इल्या कामिन्सकी के शब्दों में कि,
'जब वे दूसरे लोगों के घरों पर बमबारी कर रहे थे,
हमने ऐतराज़ किया मगर ज़रा,
हमने उनका विरोध किया मगर ज़रा...'
- जयप्रकाश त्रिपाठी
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